रुठी रुठीसी ज़िंदगी…
- सविता टिळक / कविता /
एका अनपेक्षित संकटाने सर्व जगात हाहा:कार माजला. रोजच्या जगण्यामध्ये उलथापालथ झाली. सर्व जग भयावह वाटणाऱ्या शांततेने ग्रस्त झालं एरवी...
ज़िंदगी की कश्मकश
~ हिंदी कविता / तृप्ति गुप्ता
ज़िंदगी की इस दौड़ मेंभागा चला जा रहा हूँ,आगे क्या है पकड़ने की होड़ मेंकुछ छोड़े चला जा रहा...
फिर किसी रोज़
- मानसी बोडस / ग़ज़ल /
फिर किसी रोज़ मुलाक़ात ज़रूरी होगी ।कल की वह बात हमें मंज़ूर नहीं होगी ॥
वह दिन भी आएंगे...
हिन्दी खड़ी बोली और भारतेन्दु युग के उन्नायक प्रतापनारायण मिश्र
भारतेन्दु मण्डल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार 'प्रतापनारायण मिश्र'जी.वे हिन्दी गद्य साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। खड़ी बोली के रूप में प्रचलित जनभाषा...
हमें भी अपना लो
- तेजस वेदक / कविता
Gender, pride, sexuality, equality यह तो है बस नामहक़ीक़त में जीना ना कोई साधारण काम।
किसी ने ठुकराया है, तो किसी...
क्यूं…
- अमृता लोंढे / कविता /
क्यों सपनों के पीछे दौड़ते दौड़ते थक जाता है तू...रोशनी की गलियों से होकर आख़िर अंधेरों से ही मिल...
नए ख़्वाब
२०२० का साल मानो कई ज़िन्दगियों में काली परछाई बनकर आया और ऐसे फैल गया, लगा जैसे की उसका असर खत्म न होगा कभी…...
चलो मन गंगा जमुना तीर
चलो मन गंगा जमुना तीर,गंगा यमुना निर्मल पानीशीतल होत शरीर।।धृ।।
बंसी बजावत गावत कान्हासंग लिए बलवीर,गंगा जमुना निर्मल पानी शीतल होत शरीर ।।१।।
मोर मुकट पीताम्भर...