ओम जय जगदीश हरे आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा

हिंदी और पंजाबी भाषा के साहित्यकार स्व. पंडित श्रद्धाराम शर्मा। सम्पूर्ण भारत में पंडित श्रद्धाराम शर्मा द्वारा लिखित ‘ओम जय जगदीश हरे’ की आरती गाई जाती है। श्रद्धाराम शर्मा जी ने इस आरती की रचना १८७० ई. में की थी। बचपन से ही श्रद्धाराम शर्मा जी की ज्योतिष और साहित्य के विषय में गहरी रुचि थी। उन्होंने वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी, परंतु उन्होंने सन १८४४ में अर्थात् मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी लिपि सीख ली थी। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी, पर्शियन (पारसी) तथा ज्योतिष आदि की पढ़ाई शुरू की और कुछ ही वर्षों में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए।

पंडित श्रद्धाराम शर्मा सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी के ही नहीं, बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में से एक थे। इनकी गिनती उन्नीसवीं शताब्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों में होती थी। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर उन्होंने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया, जिससे आगे चलकर आर्य समाज के लिये पहले से निर्मित उर्वर भूमि मिली। पंडित श्रद्धाराम शर्मा को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने १८७७ में ‘भाग्यवती’ नामक एक उपन्यास लिखा था, जो हिन्दी में था। माना जाता है कि यह हिन्दी का पहला उपन्यास है। वे गुरुमुखी और पंजाबी भाषा के अच्छे जानकार थे और उन्होंने अपनी पहली पुस्तक गुरुमुखी मे ही लिखी थी; परंतु वे मानते थे कि हिन्दी के माध्यम से इस देश के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने अपने साहित्य और व्याख्यानों से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ जबर्दस्त माहौल बनाया था। उन्होंने सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया और उसी क्रम में ओम जय जगदीश हरे आरती रची।

पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने सन १८६६ में पंजाबी (गुरुमुखी) में ‘सिखों दे राज दी विथिया’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी किताबें लिखकर मानो क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही पुस्तक ‘सिखों दे राज दी विथिया’ से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए और उनको “आधुनिक पंजाबी भाषा के जनक” की उपाधि मिली। बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। इस पुस्तक में सिक्ख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सार गर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय हैं। इसके तीसरे और अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत, व्यवहार आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। इसी कारण से शायद इस पुस्तक को उच्च कक्षा की पढाई के लिए चुना गया। अंग्रेज़ सरकार ने तब होने वाली आई.सी.एस. (जिसका भारतीय नाम अब ‘आई.ए.एस.’ हो गया है) परीक्षा के कोर्स में, अनिवार्य पठनीय पुस्तक विषय के रूप में इस पुस्तक को शामिल किया था।

“पंजाबी बातचीत” में मालवा, मझ्झ जैसे प्रान्तों में जो इस्तेमाल की जातीं हैं, वह बोली, बातचीत, पहनावा, सोच, मुहावरे, कहावतें जैसी बातों को समेटा गया है। “पंजाबी बातचीत” को अंग्रेज़ ब्रिटिश राज के समय पंजाबी भाषा सीखने के लिए सबसे बड़ा सहारा समझते थे। वैसे पंडित श्रद्धाराम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफ़ी प्रसिद्ध थे। उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उद्धरण देते हुए अंग्रेज़ हुकुमत के ख़िलाफ़ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार किया कि उनका आख्यान सुनकर हर एक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती थी। इससे अंग्रेज़ सरकार की नींद उड़ गई। श्रद्धाराम जी देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे।

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