हिंदी साहित्य के नई कविता आंदोलन के प्रमुख कवि स्व. कुँवर नारायण। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण जी को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता था। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है।
कुंवर नारायण इस दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा ‘चक्रव्यूह’ से शुरू हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता ही रही है, किंतु इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज ही संप्रेषणीयता आई, वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं और कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। ‘तनाव’ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफ़ी तथा ब्रोर्ख़ेस की कविताओं का भी अनुवाद किया।
इनके संग्रह ‘परिवेश हम तुम’ के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या सबके सामने आई। उन्होंने अपने प्रबंध ‘आत्मजयी’ में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया। इस कृति की विरल विशेषता यह है कि ‘अमूर्त’ को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर ‘आत्मजयी’ में कुंवर नारायण ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत ‘वाजश्रवा के बहाने’ कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है। यह कृति आज के इस बर्बर समय में भटकती हुई मानसिकता को न केवल राहत देती है, बल्कि यह प्रेरणा भी देती है कि दो पीढ़ियों के बीच समन्वय बनाए रखने का समझदार ढंग क्या हो सकता है। उन्हें पढ़ते हुए, ये लगता है कि कुंवर नारायण हिन्दी की कविता के पिछले ५५ वर्ष के इतिहास के संभवतः श्रेष्ठतम कवि हैं।