हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पंजाब घराने के जगप्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ जी का जन्मशताब्दी वर्ष

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पंजाब घराने के जगप्रसिद्ध तबला वादक स्व. उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ। उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ जी का जन्म भारत के जम्मू शहर के फगवाल नामक जगह पर हुआ था। आरंभ से ही अल्ला रक्खा को तबले की ध्वनि आकर्षित करती थी। बारह वर्ष की अल्प आयु में एक बार अपने चाचा के घर गुरदासपुर गये। वहीं से तबला सीखने के लिए घर छोड़ कर भाग गये। इस से यह पता चलता है कि उनके मन में तबला सीखने की कितनी इच्छा थी। अल्ला रक्खा ख़ाँ बारह वर्ष की उम्र से ही तबले के सुर और ताल में माहिर थे। अल्ला रक्खा ख़ाँ जी घर छोड़ कर उस समय के एक बहुत प्रसिद्ध कलाकार उस्ताद क़ादिर बक्श के पास चले गये। जैसे जौहरी हीरे की परख कर लेता है, वैसे ही उस्ताद क़ादिर बक्श भी उनके अंदर छुपे कलाकार को पहचान गये और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। इस प्रकार अल्ला रक्खा ख़ाँ जी के तबले की तालीम विधिवत आरंभ हुई। इसी दौरान उनको गायकी सीखने का भी अवसर मिला। उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ जी ने अपने सृजनता और बुद्धिचातुर्य से विवधतापूर्ण अनेक लयकारियाँ रची जिनसे संगीत जानकार एवं श्रोतागण आज भी मंत्रमुग्ध हैं।

उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ जी ने अपना व्यावसायिक जीवन एक संगीतकार के रूप में पंजाब में ही शुरू किया। बाद में १९४० के दशक में वे आकाशवाणी के मुम्बई केंद्र पर स्टाफ़ आर्टिस्ट के रूप में नियुक्त हुए। यहां तबले के विषय में लोगों की धारणा थी कि यह केवल एक संगति वाद्य ही है। उन्होंने इस धारणा को बदलने में बहुत योगदान दिया। पंडित रविशंकर के साथ अल्ला रक्खा ख़ाँ जी का तबला और निखर कर सामने आया। इस श्रंखला में सन् १९६७ में. का मोन्टेनरि पोप फ़ेस्टिवल तथा सन् १९६९ का वुडस्टाक फ़ेस्टिवल बहुत लोकप्रिय हुए। इन प्रदर्शनों से उनकी ख्याति और अधिक फैलने लगी। सन १९६० तक वे सितार सम्राट पंडित रविशंकर के मुख्य संगतकार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे।

वास्तव में उनका तबला वादन इतना आकर्षक था कि जिसके साथ भी आप संगत करते, उसकी कला में भी चार चाँद लग जाते थे। उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ, कलाकार के मनोदशा और शैली के अनुसार उसकी संगत करते थे। सिर्फ़ एक संगतकार के रूप में ही नहीं, अपितु एक स्वतंत्र तबला वादक के रूप में भी उन्होंने बहुत नाम कमाया। भारत में भी और विदेशों में भी उन्होंने तबले को एक स्वतंत्र वाद्य के रूप में प्रतिष्ठित किया। एक प्रतिभा सम्पन्न कलाकार के साथ-साथ उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ एक कुशल गुरु भी थे। उन्होंने अनेक शिष्य तैयार किए जिन्होंने तबले को और अधिक लोकप्रिय करने में बहुत योगदान दिया। उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ जी के प्रमुख शिष्यों में निम्नलिखित के नाम उल्लेखनीय हैं:- आप के तीनों सुपुत्र – उस्ताद ज़ाकिर हुसैन खां, फ़ज़ल कुरैशी और तौफ़ीक कुरैशी के अतिरिक्त योगेश शम्सी, अनुराधा पाल, आदित्य कल्याणपुर, उदय रामदास भी इनके प्रमुख शिष्य रहे।

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