मेरी नुमाइश आपकी ज़ुबानी – कल्पेश सतिश वेदक

कई बार मैं अपने सोच में इतना व्यस्त रहता हूँ की मैं अपने आप के अस्तित्व पर सवाल करता हूँ की, मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? क्यूंकि घटनाएँ ही ऐसी सामने आके अपना रंग दिखलाती है। वास्तविकता में कोई अच्छा या कोई बुरा ऐसा भेद तो नहीं किया जा सकता क्यूंकि किसी दुसरे की नज़र से ना हम ज़िंदगी देख सकते है ना महसूस कर सकते है। परंतु जब बात ‘नैतिक मूल्यों’ और ‘संस्कारों’ की आती है तब मन असमंजस में घिरा रहता है। क्या भला क्या बुरा यहाँ कौन किसीकी सुनता है?

यह वह घटना है जो हर दिन कहीं ना कहीं किसी गली नुक्कड़ पर होती आ रही है, जिसे मैंने ही नहीं बल्कि आपने भी इसे कई बार सुना होगा। पर इस बार मेरे ह्रदय की जो असमंजस विवशता थी उसने मेरी कानों की मदद पाकर मेरे रुह से एक सवाल किया – “क्या हम सचमें इसे अपनाना चाहते है? या हम वहाँ पहुँच चुके है जहाँ से लौटना मुश्किल है? या इस बात को उस अंजाम तक लेके जाए की कभी उसका जिक्र ही ना हो।”

उस दिन महिला दिवस था। मैंने घर पर माँ को और परिवारमें सभीं को, चाची, भाभी, बहनों को शुभकामनांए दी और दफ़्तर के लिए निकल पड़ा। हर सुबह दफ़्तर जाने के लिए मैं जब घर से निकलता हूँ तब मन में यहीं सोच रहती है की आज रास्ते पर दो चार पहियोंवाली गाड़ियोंका मेला न लगा हो। इस मेट्रो के चक्करमें यहाँ बहुत दिक्कते हो रही है। पर आज हमारी गली के नुक्कड़ पर भीड़ थी। मैंने आगे जाकर देखा तो चार पहियोंवाली गाड़ी से एक सुशिक्षित आदमी और उसके साथ बैठी हुई औरत गाड़ी के बाहर खड़े कूड़ा-कचरा साफ़ करनेवालेसे झगड़ा कर रहे है। बात दरअसल यह थी की कचरे की गाड़ी ने रास्ता बंद कर दिया था और दो या चार पहियोंवाली गाड़ियाँ अंदर आ नहीं पा रहीं थी। सब देख रहे थे, सुन रहे थे। कचरेवाला उन दोनों को गालियाँ दे रहा था। मैंने समझा उन दोनों को, यहाँ की इस परिस्थीती से बाहर निकाला जाए। कुछ लोगोंकी मदद से मैं वह परिस्थिती शांत करने में सफल रहा।

सब शांत होने के तुरंत बाद मैंने उस आदमी से कहा, “मुझे बहुत दुख हुआ यह सुनकर की आपको वह कचरेवाला सबके सामने गालियाँ दे रहा था।” वह मुझसे कहने लगा, “अरे भाई! पहले तो मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ की आपने आगे आके हमारी मदद की।” पर आपको किस बात का दुःख हो रहा है? वैसे यह सब गालियाँ बकना और सुनना अब तो हर दिन यही सब चलते रहता है। खुली सड़कपर हो या बंद ऑफिसमें, बल्कि यह कहो की अब तो यह व्याकरण हो चूका है। हर एक वाक्य में इसका उपयोग होता है। मेरे चेहरे पर उमड़ आए क्रोध और विवशता के भाव देखकर उसने हंसकर मुझसे पुछा क्यूँ, आप गाली नहीं देते? मैंने कहा, ऐसी परिस्थिती में हम दुसरे शब्दों का भी तो उपयोग कर सकते है। जैसे की मूर्ख, बेवक़ूफ़, गधा, अकल के दुश्मन… वह आदमी मेरी बात काटते हुए कहने लगा, “भाई देखो, सामनेवाले पर हावी होने के लिए ऐसी गालियाँ बकना आजकल स्वाभाविक हो गया है।” ऐसे शब्दोंका उपयोग करके आदमी अपने आपको ऊँचा समझता है। यह सब छोड़िए, आपको भी मालूम है की इन गालियोंका अंग्रेज़ी भाषा में भी उपयोग होता है और बहुत बड़ी सादगी के साथ कई औरतें, पाठशालाओमें जानेवाले छोटे विद्यार्थी, महाविद्यालय के लड़के लड़कियां इन शब्दोंका उपयोग हर एक दिन करते हैं।

यह सब सुनकर मैं हैरान हुआ और उसे कहने लगा, “पर इन सब में उसकी रुह को क्या होता होगा जिसका जिक्र इधर होता है? अपनी माँ, बहनों के जिस्म का इस तरह किया जानेवाला घृणास्पद प्रदर्शन और वह भी खुलेआम, भरे बाज़ार में या बंद दीवारों के भीतर घर में या ऑफिसमें जिधर उनका किसीसे भी संबंध नहीं। स्त्री के शरीर के एक अवयव से जहाँ से हम जन्म लेते है, जहाँ से हमें जिंदगी प्राप्त होती है उसीको खुलेआम दूसरोंको दर्शाना कहाँ की सभ्यता है?” मैं बचपन से ऐसे शब्द सुनता आया हूँ गली नुक्कड़ पर, पाठशाला, महाविद्यालय में पर एक बार भी मेरी हिम्मत नहीं हुई किसी दुसरे को ऐसे शब्द सुनाने की जब भी मैं ऐसी परिस्थितियों से गुज़रा हूँ। कई बार सुना है की यह शब्द ऐसेही बोले जाते हैं। कोई भी इन शब्दों का अर्थ गहराई से नहीं लेता। पर मेरा कहना यह है की आपका ज़मीर इतना नीचे गिरता है की कोई भी यह शब्द गहराई से ले या न ले, फ़िर भी आप ऐसे शब्द आपके वाणी से निकाल सकते है? इतनी नाकाम हिम्मत कहाँ से ले आते है आप लोग?

वह आदमी मेरी ओर देखकर सुन रहा था और जब जाने के लिए मैं मुड़ा तो उसके गाड़ी के भीतर बैठी वह औरत अंग्रेजी में वहीं गालियाँ बक रहीं थीं जो कुछ समय पहले वह कचरेवाला हिंदी में दे रहा था। और मैं वापस अपनी सोच में व्यस्त हुआ… निरपेक्ष भाव से देखा जाए तो ऐसे शब्दोंका उपयोग तो आदमी और औरत दोनों कर रहे है और बड़े लगाव से महिला दिवस भी मनाया जा रहा है और आगे मातृदिवस भी मनाया जाएगा।

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2 COMMENTS

  1. गहरा विचार है….लेकिन रुककर इसके उपर विचार करने के लिये अब संवेदनशील मन कितनों के पास है..??

  2. Very nicely narrated. True irony. One side we celebrate women’s day and other side people are using these bad words knowingly or unknowingly.

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