फिर किसी रोज़

– मानसी बोडस / ग़ज़ल /

फिर किसी रोज़ मुलाक़ात ज़रूरी होगी ।
कल की वह बात हमें मंज़ूर नहीं होगी ॥

वह दिन भी आएंगे कुछ ऐसे याद हमें ।
हँसते हँसते आँखोंमे नमीं होगी ।
कल की वह बात हमें मंज़ूर नहीं होगी॥

जख़्म दिल के समेटे बैठे हुए है यूँ।
खुशी की यह एक लहर काफ़ी होगी॥
कल की वह बात हमें फिर मंज़ूर नहीं होगी॥

जिस्म यूँ जिए जा रहा है हसीन लम्हें ।
कुछ बिछड़े ज़माने की याद याद होगी ।

आज फिरसे कल की वही बात होगी ।
कल की वह बात हमें मंज़ूर नहीं होगी॥

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