उड़िया भाषा के साहित्यकार गोपालचंद्र प्रहराज

उड़िया भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा भाषाविद स्व. गोपालचंद्र प्रहराज। सरल भाषा के गम्भीर विचार युक्त व्यंग्य लेखक के रूप में गोपाल चंद्र प्रहराज की काफ़ी प्रसिद्धि थी। साहित्यिक रूप में उन्होंने जिस श्रेष्ठ कृति की रचना की है वह व्यंग्य साहित्य के अंतर्गत है। जाति और समाज को नाना दोषदुर्बलताओं से बचाकर स्वस्थ जीवन का निर्माण करने के लिये वे अति तीव्रता से चुभनेवाले लेख लिखा करते थे। उसमें व्यंगभाव जितना स्पष्ट होता था उससे कहीं अधिक सरल उसकी भाषा रहती थी।

फकीरमोहन के बाद वे एकमात्र उड़िया लेखक हैं जो अपने लेखों में गाँव की भाषा को अपनाकर उसे विशेष सम्मानित और जनप्रिय बना सके। इस प्रकार की कई पुस्तकें विशेष प्रचलित हैं, यथा, दुनिआर हालचाल, आम धरर हालचाल, ननांक बस्तानि, बाईननांक बुजुलि, मिआँ साहेब का रोजनामचा, जेजेबापांक टुणुमुणि, दुनिआर रीति। इनमें से प्रत्येक कृति उड़िया साहित्य का एक एक विशिष्ट रत्न है। भाषा जितनी सरल है, भाव उतना ही मर्मस्पर्शी। किंतु उनकी साधना एवं शक्ति का विशेष परिचायक उनका भाषाकोश है।

गोपालचंद्र जी अपने भाषाकोश को लेकर केवल उड़ीसा में ही नहीं, सारे सभ्य संसार में सुविदित हैं। यह विशाल ग्रंथ सात खंडों में विभक्त है। प्रत्येक खंड में प्राय: डेढ़ हजार बृहद् आकार के पृष्ठ हैं। इस भाषाकोश का नाम मयूरभंज के स्वनामधन्य राजा पूर्णचंद्र के नाम पर “पूर्णचंद ओड़िया भाषाकोश” है। उन्होंने सर्वप्रथम सन् 1913 ई. में इसकी योजना बनाई थी और सन् 1940 ई. के शेष तक इसका प्रकाशन पूर्ण किया। सन् 1931 और 1940 ई. के बीच भाषाकोश के सातों खंड प्रकाशित हुए। उसमें शब्दों की संख्या एक लाख चौरासी हजार (1,84,000) है। इस पुस्तक की पाँच हजार प्रतियों के मुद्रण के लिये उस समय एक लाख बयालीस हजार (रु. 1,42,000) रुपए लगे थे। इसके प्रत्येक शब्द का उच्चारण अंग्रेजी वर्णो में भी दिया हुआ है और अनेक स्थलों पर हिंदी, बँगला और अँग्रेजी में भी अर्थ दिए गए हैं। पच्चीस वर्षों तक नित्य 18-18 घंटे अथक परिश्रम कर उड़ीसा के वनों, पहड़ों और प्रांतरों में घूम घूम कर उन्होंने शब्दों का संग्रह किया था। आधुनिक भाषाविद् शब्दकोश के निर्माण में जिस पद्धति का अवलंबन किया करते हैं, उन्होंने भी वही किया था। इस पुस्तक के मुद्रण के लिये केंद्रीय और राज्य सरकारों के अतिरिक्त उड़ीसा के कितने ही वदान्य व्यक्तियों ने आर्थिक सहायता दी थी। उनकी यह अमर रचना है।

Latest articles

Related articles

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!