आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ शमशेर बहादुर सिंह। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्रेज़ी कवि एजरा पाउण्ड से प्रभावित है। शमशेर बहादुर सिंह ‘दूसरा सप्तक’ (१९५१) के कवि हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने कविताओं के समान ही चित्रों में भी प्रयोग किये हैं।
आधुनिक कविता में ‘अज्ञेय’ और शमशेर का कृतित्व दो भिन्न दिशाओं का परिचायक है- ‘अज्ञेय’ की कविता में वस्तु और रूपाकार दोनों के बीच संतुलन स्थापित रखने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है, शमशेर में शिल्प-कौशल के प्रति अतिरिक्त जागरूकता है। इस दृष्टि से शमशेर और ‘अज्ञेय’ क्रमशः दो आधुनिक अंग्रेज़ कवियों एजरा पाउण्ड और इलियट के अधिक निकट हैं। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में शिल्प को प्राधान्य देने का श्रेय एजरा पाउण्ड को प्राप्त है। वस्तु की अपेक्षा रूपविधान के प्रति उनमें अधिक सजगता दृष्टिगोचर होती है। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में काव्य-शैली के नये प्रयोग एजरा पाउण्ड से प्रारम्भ होते हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने अपने वक्तव्य में एजरा पाउण्ड के प्रभाव को मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है- टेकनीक में एजरा पाउण्ड शायद मेरा सबसे बड़ा आदर्श बन गया।
शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह में मुक्त साहचर्य और असम्बद्धताजन्य दुरूहता के तत्त्व साफ़ नज़र आते हैं। उनकी अभिव्यक्ति में अधूरापन परिलक्षित होता है। शमशेर की कविता में उलझनभरी संवेदनशीलता अधिक है। उनमें शब्द-मोह, शब्द-खिलवाड़ के प्रति अधिक जागरूकता है और शब्द- योजना के माध्यम से संगीत-ध्वनि उत्पन्न करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं।
शमशेर की कविताएँ आधुनिक काव्य-बोध के अधिक निकट हैं, जहाँ पाठक तथा श्रोता के सहयोग की स्थिति को स्वीकार किया जाता है। उनका बिम्बविधान एकदम जकड़ा हुआ ‘रेडीमेड’ नहीं है। वह ‘सामाजिक’ के आस्वादन को पूरी छूट देता है। इस दृष्टि से उनमें अमूर्तन की प्रवृत्ति अपने काफ़ी शुद्ध रूप में दिखाई देती है। उर्दू की गज़ल से प्रभावित होने पर भी उन्होंने काव्य-शिल्प के नवीनतम रूपों को अपनाया है। प्रयोगवाद और नयी कविता के पुरस्कर्ताओं में वे अग्रणी हैं। उनकी रचनाप्रकृति हिन्दी में अप्रतिम है और अनेक सम्भावनाओं से युक्त है। हिन्दी के नये कवियों में उनका नाम प्रथम पांक्तोय है। ‘अज्ञेय’ के साथ शमशेर ने हिन्दी-कविताओं में रचना-पद्धति की नयी दिशाओं को उद्धाटित किया है और छायावादोत्तर काव्य को एक गति प्रदान की है।
शमशेर बहादुर सिंह हिन्दी साहित्य में माँसल एंद्रीए सौंदर्य के अद्वीतीय चितेरे और आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक रहे। उन्होंने स्वाधीनता और क्रांति को अपनी निजी चीज़ की तरह अपनाया। इंद्रिय सौंदर्य के सबसे संवेदनापूर्ण चित्र देकर भी वे अज्ञेय की तरह सौंदर्यवादी नहीं हैं। उनमें एक ऐसा ठोसपन है, जो उनकी विनम्रता को ढुलमुल नहीं बनने देता। साथ ही किसी एक चौखटे में बंधने भी नहीं देता। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ उनके प्रिय कवि थे। उन्हें याद करते हुए शमशेर बहादुर सिंह ने लिखा था- “भूल कर जब राह, जब-जब राह.. भटका मैं/ तुम्हीं झलके हे महाकवि,/ सघन तम की आंख बन मेरे लिए।”
शमशेर के राग-विराग गहरे और स्थायी थे। अवसरवादी ढंग से विचारों को अपनाना, छोड़ना उनका काम नहीं था। अपने मित्र और कवि केदारनाथ अग्रवाल की तरह वे एक तरफ़ ‘यौवन की उमड़ती यमुनाएं’ अनुभव कर सकते थे, वहीं दूसरी ओर ‘लहू भरे ग्वालियर के बाज़ार में जुलूस’ भी देख सकते थे। उनके लिए निजता और सामाजिकता में अलगाव और विरोध नहीं था, बल्कि दोनों एक ही अस्तित्व के दो छोर थे। शमशेर बहादुर सिंह उन कवियों में से थे, जिनके लिए मार्क्सवाद की क्रांतिकारी आस्था और भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा में विरोध नहीं था।