भारत देश के २४ भाषाओंमें विशेष साहित्यिक योगदान देनेवाले प्रख्यात साहित्यिक चंद्रकांत देवताले। चंद्रकांत जी अपनी कविता की सघन बुनावट और उसमें निहित राजनीतिक संवेदना के लिए जाने जाते थे। वे ‘दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी’ से लेकर ‘बुद्ध के देश में बुश’ तक पर कविताएं लिखते थे। देवताले वंचितों की महागाथा के कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में दलितों, वंचकों, आदिवासियों, शोषितों को जगह दी। उनकी कविताओं में न्याय पक्षधरता के साथ साथ ग्लोबल वार्मिंग जैसी आधुनिक चुनौतियों पर भी विमर्श दिखता है।
अपने प्रिय कवि मुक्तिबोध की तरह देवताले मराठी से आंगन की भाषा की तरह बर्ताव करते थे। यह उनकी कविताओं में बार-बार देखा जा सकता है। वह इंदौर में रहे और इंदौर को अपनी सार्वदेशिकता के कारण मध्य भारत का मुंबई कहा जाता है। यह सार्वदेशिकता उनकी कविताएं भी बयान करती हैं। देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि में जहाँ व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ गुस्सा है, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहते हैं। कविता की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है।