भारतीय शास्त्रीय संगीत ध्रुपद गायन शैली के प्रसिद्ध गायक स्व. ज़िया फ़रीदुद्दीन डागर। फ़रीदुद्दीन डागर जी का जन्म १५ जून १९३२ में राजस्थान के उदयपुर में हुआ था, जहां उनके पिता उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह के दरबार में संगीतज्ञ थे। फ़रीदुद्दीन जी ने देश विदेश के कई बड़े उत्सवों में अपनी कला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता उस्ताद ज़ियाउद्दीन खान साहब से ली थी। पिता ने उन्हें ध्रुपद गायन और वीणा वादन में प्रशिक्षित किया। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने बड़े भाई से संगीत की शिक्षा ली। उस्ताद ज़िया फ़रीदुद्दीन डागर जी उस परिवार से थे जिसने १९ पीढिय़ों तक ध्रुपद गायकी को आगे बढ़ाया था।
वे डागर घराने के अन्य कलाकारों के भाँति ही फ़कीरी प्रकृति के कलाकार थे। मन में आया तो दो मीठे बोल पर और लड्डुओं में रात भर गा दिया, अन्यथा लाख रुपए भी ठुकरा दिए। भोपाल ध्रुपद केंद्र में संगीत साधना कर रहे बिहार निवासी मनोज कुमार जी को दो वर्षों तक उस्ताद जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा, “सिखाने का अद्भुत तरीका था उनका, बहुत प्यार से सिखाते थे। मुझे तो उस वक्त कुछ आता नहीं था बस उनको सिखाते हुए देखता था। वे सबसे पहले स्वर की तैयारी करवाते थे। गायकी में स्वर स्थान महत्त्वपूर्ण होता है। स्वर स्थान की तैयारी के बाद सामवेद की ऋचाएं जो ध्रुपद में गाई जाती है, उसे सिखाते थे।” वे आगे कहते हैं, “वे हमारे दादा गुरु थे, उस्ताद जी के बारे में, उनके सिखाने की शैली के बारे में अपने गुरु उमाकांत गुंदेचा जी और रमाकांत गुंदेचा जी से अक्सर सुना करता था। लगभग वही चीजें, उसी शैली में हमारे गुरु भी सिखाते हैं। इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि वे अब नहीं रहे। उनका शरीर भले ना रहा हो, शरीर तो नश्वर है लेकिन उनकी कृतियां तो हमेशा रहेगी और हमारा मार्गदर्शन करेगी।