हमें भी अपना लो

0
478

– तेजस वेदक / कविता

Gender, pride, sexuality, equality यह तो है बस नाम
हक़ीक़त में जीना ना कोई साधारण काम।

किसी ने ठुकराया है, तो किसी ने बेघर किया है
किसी ने तो अपने बेटे से नाता तोड़ दिया है।

अब छुपाकर क्या रखना, यह तो ज़ालिम दुनिया है
अपने स्वार्थ के लिए तो यहां सभी जी रहें हैं।

अब हम भी थोड़ा जी लेंगे ज़िंदगी, जिस पर हमें गर्व है
अपने प्यार के लिए लड़ना, उसमें क्या ग़लत है।

हम ऐसे हे मतलब माँ के संस्कार कम नहीं पड़े
आपकी सोच अभितक पुरानी है इसलिए आप आगे नहीं बढ़े।

कई लोगो ने अपनाया है, मगर दिल से नहीं यह अंतर हमें मिटाना है
उनका प्यार प्यार, पर हमारा प्यार बेकार नहीं।

रंग हमारे अलग ज़रूर है, पर झंडा एक है
सात रंगो से मिली यह हमारी मूठ्ठी एक है।

किसीकी पसंद का मूल्यांकन करना कोई गर्व की बात नहीं होती
हर किसीकी पसंद कभी एक समान नहीं होती,

चाहे जो कुछ भी कहे, पीछे ना अब हटना है
अपनाकर देखो हमें भी, अब यह अंतर हमें मिटाना है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here