हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन एवं नृत्य कला क्षेत्र की प्रसिद्ध गायिका स्व. गौहार जान। गौहर जान का जन्म एक ख्रिश्चियन परिवार में हुआ था और पहले उनका नाम एंजलिना था। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मीं गौहर के दादा ब्रिटिश थे तो उनकी दादी हिन्दू थीं। गौहर जान के पिता अर्मेनियन थे और मां विक्टोरिया जन्म से भारतीय थीं तथा एक प्रशिक्षित नृत्यांगना और गायिका थीं। अपने पति से तलाक होने के बाद विक्टोरिया अपनी ८ साल की बच्ची एंजलिना को लेकर बनारस चली गई थीं, जहां उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया और नाम रखा ‘मलका जान’। मां के साथ साथ गौहर का भी धर्म बदला गया और वह एंजलिना से गौहर जान बन गईं। एंजलिना से गौहर बनने वालीं इस कलाकार का अधिकतर काम कृष्ण भक्ति पर है। बनारस से दोनों माँ-बेटी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए, जहां गौहर ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। १८८७ से अपनी यात्रा शुरू करने के बाद १९ वीं सदी तक वह प्रसिद्ध हो गईं।
गौहर जान ने पटियाला के काले खान उर्फ ‘कालू उस्ताद’, रामपुर के उस्ताद वजीर खान और पटियाला घराने के संस्थापक उस्ताद अली बख्श जरनैल से हिन्दुस्तानी गायन सीखा। इसके अलावा उन्होंने महान कत्थक गुरु बिंदादीन महाराज से कत्थक, सृजनबाई से ध्रुपद और चरन दास से बंगाली कीर्तन में शिक्षा ली। जल्द ही गौहर जान ने ‘हमदम’ नाम से गजलें लिखना शुरू कर दिया। यही नहीं उन्होंने रविन्द्र संगीत में भी महारथ हासिल कर ली।
वे दक्षिण एशिया की पहली गायिका थीं, जिनके गाने ग्रामाफोन कंपनी ने रिकॉर्ड किए थे। रिकॉर्डिंग १९०२ में हुई थी और उनके गानों की बदौलत ही भारत में ग्रामोफोन को लोप्रियता हासिल हुई। गौहर जान ने १९०२ से १९२० के बीच बंगाली, हिन्दुस्तानी, गुजराती, तमिल, मराठी, अरबी, फ़ारसी, पश्तो, फ्रेंच और अंग्रेज़ी समेत १० से भी ज्यादा भाषाओं में ६०० से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए। गौहर जान ने अपनी ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती, भजन और तराना के जरिए हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को दूर-दूर तक पहुंचाया।
ग्रामोफोन कंपनी के लिए भारतीय गायन कला को जगप्रसिद्ध करनेवाली ‘गौहार जान’
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