भारत के प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार स्व. डॉ. नगेंद्र। आधुनिक हिन्दी की आलोचना को समृद्ध करने में डॉ. नगेन्द्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। वे काव्य शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् माने जाते थे। उनके निबन्धों में वैचारिक औदात्य के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व भी अभिव्यक्ति पा गया है। उनके निबन्धों में एक सहृदय तथा भावुक निबन्धकार के गुण भली-भाँति लक्षित होते हैं। इसका कारण यह है कि नगेन्द्र जी का हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश एक कवि के रूप में हुआ था। उनकी प्रतिभा का विकास मूलतः आलोचनात्मक निबन्धकार के रूप में ही हुआ। हिन्दी के पांक्तेय आलोचक के रूप में नगेन्द्र विशेषतः यशस्वी रहे हैं।
नगेन्द्र जी ने अपनी प्रखर कलम के द्वारा हिन्दी निबन्ध साहित्य की गरिमा को अद्वितीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाहित की। उनके द्वारा कृत ‘मेरा व्यवसाय’ और ‘साहित्य सृजन’ शीर्षक इस निबन्ध लेखक की आत्मपरक शैली का प्रतीक है। डॉ. नगेन्द्र के निबन्धों की भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित, व्याकरण सम्मत तथा साहित्यिक खड़ी बोली है। गद्य भाषा की प्रमुख विशेषता यह है कि वह विषयानुरूप अपना स्वरूप बदलती चलती है। डॉ. नगेन्द्र की निबन्ध लेखन की शैली में भावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता लक्षित होती है।