हिंदी साहित्यकार चन्द्रबली पाण्डेय

Hindi Writer Chandrabali Pandey

हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन, संवर्धन और संरक्षण के लिए समर्पित साहित्यकार चन्द्रबली पाण्डेय। इन्होंने अपना पूरा जीवन अध्ययन और हिंदी प्रचार में लगा दिया। हिंदी उर्दू समस्या तथा सूफ़ी साहित्य और दर्शन से सम्बद्ध इनके विचार ऐतिहासिक महत्त्व के हैं। चन्द्रबली पाण्डेय आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे। उनके स्वभाव में सरलता और अक्खड़पन का अद्भुत मेल था। निर्भीकता और सत्यप्रेम इनके निसर्गसिद्ध गुण थे।

चन्द्रबली पाण्डेय ने जीवन में कभी पराजय स्वीकार नहीं की थी। अपनी व्यक्तिगत सुख, सुविधा और किसी प्रकार की स्वकीय आवश्यकता के लिए वे कभी यत्नवान नहीं हुए। अभाव, कष्ट और कठिनाइयों को वे नगण्य मानते रहे थे। जीवन का एकमात्र लक्ष्य साहित्य साधना थी। चन्द्रबली पाण्डेय का आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शिष्यों में मूर्धन्य स्थान था। गुरुवर्य का प्रगाढ़ स्नेह इन्हें प्राप्त था। अपने पिता का यही नाम होने के कारण आचार्य शुक्ल इन्हें ‘शाह साहब’ कहा करते थे। ऐसे योग्य शिष्य की प्राप्ति का शुक्ल जी को गर्व था।

आचार्य चंद्रबली पाण्डेय ने ‘तसव्वुफ़ अथवा सूफ़ीमत’ नामक पुस्तक लिखी, जो हिंदी में सूफ़ीमत का पहला क्रमबद्ध अध्ययन है। इस ग्रंथ में सूफ़ीमत का उद्भव, विकास, आस्था, प्रतीक, अध्यात्म साहित्य आदि विषयों पर विस्तार से विचार किया गया है। परिशिष्ट में तसव्वुफ़ का प्रभाव तथा तसव्वुफ़ पर भारत का प्रभाव, विषयों पर भी अध्ययन किया गया है। किंतु इसमें ईरान और अरब के सूफ़ीमत पर जितना विस्तार से विचार किया गया है उतना भारतीय सूफ़ीमतवाद पर नहीं। मलिक मुहम्मद जायसी तथा अन्य कवियों पर पाण्डेय जी के अन्य लेख भी नागरी प्रचारिणी पत्रिका में तथा अन्यत्र प्रकाशित हो चुके हैं। नूरमुहम्मद कृत ‘अनुराग बांसुरी’ में उन्होंने एक भूमिका दी है, जिसमें सूफ़ी कवियों की कुछ विशेषताएँ स्पष्ट की गई हैं।

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