नए ख़्वाब

२०२० का साल मानो कई ज़िन्दगियों में काली परछाई बनकर आया और ऐसे फैल गया, लगा जैसे की उसका असर खत्म न होगा कभी… कई ज़िंदगियाँ बर्बाद हो गयी…
कितनों का साथ हमेशा के लिए छूट गया… पर इन्सान को परमात्मा ने एक बड़ी सौगात दी है… उम्मीद की… इसी उम्मीद के दमपर इन्सान इस काले साये से उपर उभरने लगा… और जिंदगी ने फिर करवट ली… – सविता टिळक

इन उदास आँखों में कभी
ख़्वाबों के फूल खिला करते थे
आज ना जाने क्यों इनमें
बुझती उम्मीदों के दियें दिखते हैं

आज चूप चूप सा यह मन
कभी आसमान को छूता था
ना जाने क्यों आज यह
गम के सागर में डूबा रहता है

अचानक से कभी खिलती
आशाओं की नयी किरनें
झड़ जाते गम के बादल
पल में मंज़र बदल जाता है

और जग जाए चाहत
लेके नयी आस जीने की
झूमके उठता है दिल
नए ख़्वाब सजा लेता है

  • – सविता टिळक

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