खोज जीवन की

– सविता टिळक / कविता /

संसार सागर की उठती ढलती लहरों में।
कहाँ बसता जीवन का सही अर्थ?
क्या पूरा सच कोई जान पाए…
या यूंही हो जाती खोज व्यर्थ।

उभरती लहरें, मानों झुलाती सुख का झूला।
और ढलती लहरों में जैसे लगता दुखों का मेला…।
क्या मानें सुख भरे जीवन को परिपूर्ण।
और दुख भरे जीवन को कहे अपूर्ण…।

अगर विश्व में हर कही दिखता परिवर्तन।
सुख-दुख की लहरों का आना हो जाता अटल।
दुख-सुख का अनुभव लाये जीने में संतुलन।
और बढाये रहता मन का बल।

जब गुज़रें बारंबार सुख-दुख के चक्र से।
तब समझें सारे बंधन मोह, माया के।
मन मुक्त होना चाहें इन उलझनों से।
छोड़ना चाहें सब रुप दिखावे के।

नयी आस से मन भरे।
करें जीवन उद्देश्य की खोज।
और ढूंढे जीवन का अंतिम सच।
जो होता संसार से परे…।

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here