बस एक बार…

– रोहन पिंपळे / कविता /

हर पल हसता रहता हूं,
एक बार खुलकर रोना चाहता हूं…
नींद ठीक से आती नहीं,
बस एक बार चैन से सोना चाहता हूं…
कुछ अनकही सी बाते है
जो मै बताना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
मैं आज खोलना चाहता हूं…

कहती कुछ और है यह दुनिया
असली मतलब समझना चाहता हूं…
इस दुनिया के दस्तूर को मैं
थोड़ा बदलना चाहता हूं…
चारों तरफ मेरे अंधेरा ही अंधेरा है
बस एक बार रोशनी में जाना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
मैं आज खोलना चाहता हूं…

दिल में उठे तूफानों को
मैं खामोश करना चाहता हूं…
मेरे छुपे हुए जज़्बातों को
खुली राह देना चाहता हूं…
ज़मीन पर अपने क़दम रखकर
बस एक बार आसमान में उड़ना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
मैं आज खोलना चाहता हूं…

अंदर दबे आंसुओं को
आज बहनें देना चाहता हूं…
अपनी नकली मुस्कुराहट से मैं
पर्दा हटाना चाहता हूं…
दो पल ही सही पर मैं
अपनी ज़िन्दगी जीना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
आज मैं खोलना चाहता हूं…

डरता हूं किसी से कुछ कहने से
इस डर को भगाना चाहता हूं…
अपनी इस ज़िन्दगी को मैं
एक सुहाना मोड़ देना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
आज मैं खोलना चाहता हूं…
इस दिल में छुपे सारे राज़
आज मैं खोलना चाहता हूं…

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here