स्त्री

  • – रोहन पिंपळे / कविता /

जीवन के इस खेल में, हर व्यक्ति यहां बुलंद है…
फिर भी न जाने मर्दों को, किस बात का घमंड है…
न जाने क्यूं यह नारी की, ताकत को भूल जाते है…
मृत्यु को करे परास्त, इसकी शक्ति तो प्रचंड है…

नारी से हर पल यहां, सम्मान मर्द को चाहिए…
प्यार से, विश्वास से, सहारा उसका चाहिए…
मर्दों ने तो सिर्फ हैवानियत दिखाई है…
प्यार के बदले उसको प्यार ही तो चाहिए…

विधाता ने बनाया है, इंसान ने चलाया है…
बेटे को ज़िंदा रखा, बेटी को यहां जलाया है…
है देवी कोई मानता, मां का दर्जा भी मौजूद है…
फिर भी छीन लिया उससे, उसके होने का वजूद है…

लाख तकलीफें सेह कर भी, रिश्ता औरत ने निभाया है
मुस्कुरा के हमेशा अपने ग़म को भी छुपाया है…
ख़्वाहिश के मंज़र को, अपने दिल में ही दबाया है…
परिवार के सपनों के पीछे, जीवन खुद का बिताया है…

साथ जीना सीख लो, ना देना इसको दर्द तुम…
समझोगे जो नारी को, समझोगे जीवन का अर्थ तुम…
जीवन के दो पहिए, एक नर और एक नारी है…
अस्तित्व नारी का है महान, ना करो इसको व्यर्थ तुम…

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