हिंदी भाषा कि प्रसिद्ध लेखिका एवं पत्रकार श्रीमती मृणाल पाण्डे। मृणाल पाण्डे की माँ शिवानी जानी-मानी उपन्यासकार एवं लेखिका थीं। पहली कहानी प्रतिष्ठित हिंदी साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में उस समय छपी, जब वह युवावस्था की दहलीज पर थीं। मृणाल ने अपनी कहानियों में शहरी जीवन और सामाजिक परिवेश में महिलाओं की स्थिति को केंद्रीय विषय बनाया है। उनकी कहानियां तेजी से बदलता सामाजिक परिवेश, रिश्तों की उधेड़-बुन भी उनकी कहानियों मे प्रमुखता से नजर आती है।
उन्होंने ‘ध्वनियों के आलोक में स्त्री’ के जरिये संगीत साधक महिलाओं के बहाने समाज के दोमुंहेपन को उजागर किया है। वह साहित्य ही नहीं, संगीत के इतिहास की भी परत-दर परत खोलती हैं। देश आजाद होने के दौर से पहले की पृष्ठभूमि में जाकर वह बताती हैं कि जब संगीत के उस्ताद और गुरु राजनीति से हमेशा दूर रहे, कलाकारों को कुटिल उठापटक नापसंद थी। देश का जब बंटवारा हुआ, ज्यादातर मुसलमान गायक-गायिकाएं हिंदुस्तान छोड़ने को राजी नहीं हुए क्योंकि अपनों के बीच गाने-बजाने का मजा ही कुछ और। यह न पंडत का गाना, न उस्ताद का, यह असल हड्डी का गाना।