भारतीय शास्त्रीय गायन ठुमरी शैली को विश्वभर में प्रसिद्ध करनेवाली प्रसिद्ध कलाकार स्व. भानुमती शिरोडकर – शोभा गुर्टू। शोभा गुर्टू को ‘ठुमरियों की रानी’ कहा जाता है। उन्होंने ठुमरी के अतिरिक्त कजरी, होरी और दादरा आदि उप-शास्त्रीय शैलियों के अस्तित्व को भी बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
शुद्ध शास्त्रीय संगीत में शोभा जी की अच्छी पकड़ तो थी ही, किन्तु उन्हें देश-विदेश में ख्याति प्राप्त हुई ठुमरी, कजरी, होरी, दादरा आदि उप-शास्त्रीय शैलियों से, जिनके अस्तित्व को बचाने में उन्होंने विशेष भूमिका निभाई थी। आगे चलकर अपने मनमोहक ठुमरी गायन के लिए वे ‘ठुमरी क्वीन’ कहलाईं। वे न केवल अपने गले की आवाज़ से बल्कि अपनी आँखों से भी गाती थीं। एक गीत से दूसरे में जैसे किसी कविता के चरित्रों की भांति वे भाव बदलती थीं, चाहे वह रयात्मक हो या प्रेमी द्वारा ठुकराया हुआ हो अथवा नख़रेबाज़ या इश्कज़ हो। उनकी गायकी बेगम अख़्तर तथा उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब से ख़ासा प्रभावित थी। उन्होंने अपने कई कार्यक्रम कथक नृत्याचार्य पंडित बिरजू महाराज के साथ प्रस्तुत किए थे, जिनमें विशेष रूप से उनके गायन के ‘अभिनय’ अंग का प्रयोग किया जाता था।