तमिल भाषा के कवि सुब्रह्मण्य भारती। इन्हें ‘महाकवि भारतियार’ के नाम से भी जाना जाता है। भारती एक जुझारू शिक्षक, देशप्रेमी और महान् कवि थे। उनकी देश प्रेम की कविताएँ इतनी श्रेष्ठ हैं कि उन्हें ‘भारती’ उपनाम से ही पुकारा जाने लगा। तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती ऐसे साहित्यकार थे, जो सक्रिय रूप से ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ में शामिल रहे, जबकि उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में आम लोग आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े।
वे ऐसे महान् कवियों में से एक थे, जिनकी पकड़ हिंदी, बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी आदि कई भाषाओं पर थी, पर तमिल उनके लिए सबसे प्रिय और मीठी भाषा थी। उनका ‘गद्य’ और ‘पद्य’ दोनों विधाओं पर समान अधिकार था। सुब्रह्मण्य भारती जी की प्रारंभिक कविताओं में तमिल राष्ट्रवाद का उल्लेख मिलता है, किन्तु स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के बाद उनकी जीवन के उत्तरार्ध में लिखी कविताएं भारतीय हिन्दू राष्ट्रवाद का गुणगान करती हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ। देशभक्ति से ओतप्रोत स्वामीजी के भाषणों द्वारा पैदा की गई विचारों की चिंगारी का असर वीर सावरकर तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रभक्तों पर भी दिखाई देता है। ‘स्वदेश गीतांगल’ तथा ‘जन्मभूमि’ उनके देशभिक्तपूर्ण काव्य माने जाते हैं, जिनमें राष्ट्रप्रेम् और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति ललकार के भाव मौजूद हैं।