परिस्थितीबद्ध त्यौहार

– तृप्ति गुप्ता / कविता /

रक्षाबन्धन की तैयारी में हैं सब व्यस्त,
पहले से ही तैयारियाँ चल रहीं हैं ज़बरदस्त।

हर बार तो बहनें साथ लाती थीं बहार,
पर इस बार कहीं सूना ना रह जाए ये त्यौहार।

खुद ही सब शौक़ पूरे करने में लगे हैं,
त्यौहार को खुशियों से भरने में लगे हैं।

सिर्फ़ खून का नहीं, दिलों का है ये रिश्ता,
भाई-बहन के प्यार की अलग ही है प्रतिष्ठा।

चाहे साथ रह कर लड़ते झगड़ते हैं,
पर दूर होते ही मिलने को तड़पते हैं।

अजब रीत की है यह गजब कहानी,
दूर देशों में बैठे हैं ले आँखों में पानी।

रेशम की डोर नही बल्कि दिल के तार से जुड़ा है यह रिश्ता,
हर बुरी नज़र से सदा बचाए रखे इसे फ़रिश्ता।

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