भारतीय शास्त्रीय संगीत के बाँसुरी वाद्य को जगप्रसिद्ध बनानेवाले महान पंडित स्व. पन्नालाल घोष जी के १०८ वें जन्मदिन पर विनम्र अभिवादन। उन्हें ‘बांसुरी के मसीहा’, ‘नयी बांसुरी के जन्मदाता’ और ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत का युगपुरुष’, जिसने लोक वाद्य बाँसुरी को शास्त्रीय के रंग में ढालकर शास्त्रीय वाद्य यंत्र बना दिया।
‘अमल ज्योति घोष’ के नाम से जाने जाने वाले पंडित पन्नालाल घोष का जन्म पूर्वी बंगाल के बारीसाल में हुआ था। शुरू में उनका परिवार अमरनाथगंज के गांव में रहता था जो बाद में फतेहपुर आ गया। उनका जन्म संगीत सुधी परिवार में हुआ था। उनके पिता अक्षय कुमार घोष सितार वादक थे और उनकी माँ सुकुमारी गायक थीं।
हार्मोनियम उस्ताद खुशी मोहम्मद ख़ान उनके पहले गुरु थे और ख्याल गायक पंडित गिरजा शंकर चक्रवर्ती एवं उस्ताद अलाउद्दीन ख़ान साहब से भी उन्होंने शिक्षा हासिल की थी। बांसुरी को शास्त्रीय वाद्य के रूप में लोगों के दिलों में बसाने का काम पन्नालाल घोष ने शुरू किया था और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे बांसुरी वादकों ने इस वाद्य यंत्र को विदेशों में लोकप्रिय कर दिया।
पन्नालाल जी ने कई फ़िल्मों में भी बांसुरी बजाई थी, जो आज भी अद्वितीय है। जिनमें मुग़ले आज़म, बसंत बहार, बसंत, दुहाई, अंजान और आंदोलन जैसी कई प्रसिद्ध फ़िल्में प्रमुख हैं जिसके संगीत के साथ पंडित पन्नालाल घोष का नाम जुड़ा रहा।
संगीत वाद्य बाँसुरी के मसीहा और भारतीय शास्त्रीय संगीत के युगपुरुष पंडित पन्नालाल घोष
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