क्यूं…

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– अमृता लोंढे / कविता /

क्यों सपनों के पीछे दौड़ते दौड़ते थक जाता है तू…
रोशनी की गलियों से होकर आख़िर अंधेरों से ही मिल जाता है तू… 

मेरे बावरें मन, तू समझोंतो से है भरा..
रोंदे, चीख़, चिल्लाकर कर ले दिल को हलका ज़रा…

ख़ामोश रहके मिलेगी तुझे ढेर सारी तनहाई… 
आंखों में बादल भर आएंगे, सीने में आंसूओं की गहराई…

हर बार जीत जाना आसान नहीं होता, 
कभी कभी हारनेवाला भी तो बाज़ीगर है कहलाता…  

ए मेरे दिल कर ले कभी अंदर के अंधेरों से सवाल, 
तू ठीक तो है ना, पूछ लेना उसके हाल..

हर सवाल का जवाब जब ना दे पाए ज़िंदगी तुझे..
नाराज़ ना होना, रुठ ना जाना, मुस्कुराकर मना लेना उसे..

हाथों में ज़िंदगी के डाल तू हाथ..
चल दे चार पल उसके साथ 
मुश्किलोंवाली यह घड़ी पर 
डटके तू दे देना मात…

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