भारतीय शास्त्रीय नृत्य की कथक शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के ज्येष्ठ नर्तक श्री. बृजमोहन नाथ मिश्रा – बिरजू महाराज। ताल और घुँघुरूओं के तालमेल के साथ कथक नृत्य पेश करना एक आम बात है, लेकिन जब ताल की थापों और घुँघुरूओं की रूंझन को महारास के माधुर्य में तब्दील करने की बात हो तो बिरजू महाराज के अतिरिक्त और कोई नाम ध्यान में नहीं आता। अपनी परिशुद्ध ताल और भावपूर्ण अभिनय के लिये प्रसिद्ध बिरजू महाराज ने एक ऐसी शैली विकसित की है, जो उनके दोनों चाचाओं और पिता से संबंधित तत्वों को सम्मिश्रित करती है। वह पदचालन की सूक्ष्मता और मुख व गर्दन के चालन को अपने पिता से और विशिष्ट चालों (चाल) और चाल के प्रवाह को अपने चाचाओं से प्राप्त करने का दावा करते हैं। बिरजू महाराज ने राधा-कृष्ण अनुश्रुत प्रसंगों के वर्णन के साथ विभिन्न अपौराणिक और सामाजिक विषयों पर स्वंय को अभिव्यक्त करने के लिये नृत्य की शैली में नूतन प्रयोग किये हैं। उन्होंने कत्थक शैली में नृत्य रचना, जो पहले भारतीय नृत्य शैली में एक अनजाना तत्त्व था, को जोड़कर उसे आधुनिक बना दिया है और नृत्य नाटिकाओं को प्रचलित किया है। केवल नृत्य के क्षेत्र में ही बिरजू महाराज सिद्धहस्त नहीं हैं, बल्कि ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत’ पर भी उनकी गहरी पकड़ है। ठुमरी, दादरा, भजन और गजल गायकी में उनका कोई जवाब नहीं है। वे कई वाद्य यंत्र भी बखूबी बजाते हैं। तबले पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ है। इसके अतिरिक्त वह सितार, सरोद और सारंगी भी अच्छा प्रकार से बजा सकते हैं। ख़ास बात यह है कि उन्होंने इन वाद्य यंत्रों को बजाने की विधिवत शिक्षा नहीं ली है। एक संवेदनशील कवि और चित्रकार के रूप में भी उन्हें जाना जाता है।
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