भारतीय शास्त्रीय संगीत के ‘सितार के जादूगर’ उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ। इनका चमत्कारिक सितार वादन संगीत से अनभिज्ञ श्रोताओं को भी रसमग्न कर देता है था। इनके वादन की अपनी अलग शैली थी, जिसे लोग ‘जाफ़रखानी बाज’ कहते हैं। इसमें मिज़राव का काम कम तथा बाएँ हाथ का काम ज़्यादा होता हैं। कण, मुर्की, खटका आदि का काम भी अधिक रहता है। प्रस्तुतीकरण में बीन तथा सरोद अंग का आभास होता है।
आकाशवाणी के राष्ट्रीय कार्यक्रमों तथा अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों में उन्होंने सितार वादन से आपने लाखों श्रोताओं की आनन्द-विभोर तथा आश्चर्यचकित किया। चकंधुन, कल्पना, मध्यमी तथा खुसरूबानी जैसे मधुर राग उन्होंने निर्मित किए हैं। कुछ दक्षिणी रागों को भी उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ को जाता हैं।