हिंदी साहित्य जगत् और हिंदी फ़िल्म जगत् के अति सुदृढ रचनाकार रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी ‘कवि ‘प्रदीप’
‘भारत-चीन युद्ध’ के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में उन्होंने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ जैसा देशभक्ति पर गीत लिखा। कवि प्रदीप ने प्रेम के हर रूप और हर रस को शब्दों में उतारा, लेकिन वीर रस और देश भक्ति के उनके गीतों की बात ही कुछ अनोखी थी।
कवि सम्मेलनों में सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी जैसे महान् साहित्यकार को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र ‘प्रदीप’ कहलाने लगे। कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। प्रदीप जी ने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्व नहीं दिया। अपने गीतों को प्रदीप ने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने लखनऊ की पत्रिका ‘माधुरी’ के फ़रवरी, १९३८ के अंक में प्रदीप पर लेख लिखकर उनकी काव्य-प्रतिभा पर स्वर्ण-मुहर लगा दी। निराला जी ने लिखा – “आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत् में फैला हुआ है, उनमें ‘प्रदीप’ का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है। हिन्दी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है। इधर ३-४ साल से अनेक कवि सम्मेलन प्रदीप की रचना और रागिनी से उद्भासित हो चुके हैं।”