‘तारसप्तक’ के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार माथुर

हिंदी भाषा के प्रख्यात कवि, नाटककार स्व. गिरिजाकुमार माथुर। इनकी कविताओं में रंग, रूप, रस, भाव तथा शिल्प के नए-नए प्रयोग उभरकर सामने आते हैं। गिरिजाकुमार माथुर की ‘मैं वक़्त के हूँ सामने’ नामक काव्य संग्रह साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है। गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत १९३४ में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और १९४१ में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह ‘मंजीर’ की भूमिका उन्होंने निराला से लिखवाई। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित था।

सन १९४३ में अज्ञेय द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित ‘तारसप्तक’ (गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा एवं अज्ञेय) के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका ‘गगनांचल’ का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत ‘हम होंगे कामयाब’ समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है।

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