हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार सेठ गोविन्द दास। भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के वे प्रबल समर्थक थे। सेठ गोविंददास मुख्यतः नाटककार थे। उनकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोली थी। भाषा, भाव, विषय एवं पात्रानुकूल होती थी। उनकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव, देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश होता था। चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रवाहशीलता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषताएं थी।
सेठ गोविंद दास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार थे। उनके नाटकों का कैनवास भारतीय पौराणिक कलाओं और इतिहास की सम्पूर्ण अवधि को आच्छादित करता है। देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों ‘चन्द्रकांता संतति’ की तर्ज पर उन्होंने ‘चंपावती’, ‘कृष्णलता’ और ‘सोमलता’ नामक उपन्यास लिखे। शेक्सपीयर के ‘रोमियो-जूलियट’, ‘एज़यू लाइक इट’, ‘पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर’ और ‘विंटर्स टेल’ नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठ जी ने ‘सुरेन्द्र-सुंदरी’, ‘कृष्णकामिनी’, ‘होनहार’ और ‘व्यर्थ संदेह’ नामक उपन्यासों की रचना की।