हिंदी भाषा के प्रसिद्ध लेखक स्व. देवकीनन्दन खत्री। वे हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस किताब का रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने ‘तिलिस्म’, ‘ऐय्यार’ और ‘ऐय्यारी’ जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया।
देवकीनन्दन खत्री जी ने जब उपन्यास लिखना शुरू किया था उस जमाने में अधिकतर लोग भी उर्दू भाषी ही थे। ऐसी परिस्थिति में खत्री जी का मुख्य लक्ष्य था ऐसी रचना करना जिससे देवनागरी हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो। यह उतना आसान कार्य नहीं था। परन्तु उन्होंने ऐसा कर दिखाया। चंद्रकांता उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि जो लोग हिन्दी लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे या उर्दूदाँ थे, उन्होंने केवल इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखी। इसी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसी कथा को आगे बढ़ाते हुए दूसरा उपन्यास “चंद्रकांता सन्तति” लिखा जो “चंद्रकांता” की अपेक्षा कई गुणा रोचक था।
देवकीनन्दन खत्री जी की सभी कृतियों में मनोरंजन की जो इतनी अधिक कौतूहलवर्धक और रोचक सामग्री मिलती है, उसका सारा श्रेय उनके अनोखे और अप्रतिम बुद्धिबल का ही है। उन्होंने हिन्दी के औपन्यासिक क्षेत्र का आरंभ ही नहीं किया था, उसमें बहुत ही उच्च, उज्ज्वल और बेजोड़ स्थान भी प्राप्त कर लिया था।
‘चंद्रकांता’ उपन्यास के प्रसिद्ध लेखक देवकीनन्दन खत्री
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