मानवीय संवेदनाओं का अपने कहानियों में बखुबी से चित्रण करनेवाली हिंदी लेखिका श्रीमती चित्रा मुद्गल। चित्रा मुद्गल को उनके उपन्यास ‘आवां’ के लिए २००३ में ‘व्यास सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। उनका ये उपन्यास आठ भाषाओं में अनुवादित हो चुका है। चित्रकला में गहरी अभिरुचि रखने वाली चित्रा ने जे. जे. स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्टस का अध्ययन भी किया है। सोमैया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान श्रमिक नेता दत्ता सामन्त के संपर्क में आकर श्रमिक आंदोलन से जुड़ीं। उन्हीं दिनों घरों में झाडू-पोंछा कर, उत्पीड़न और बदहाली में जीवन-यापन करने वाली बाइयों के उत्थान और बुनियादी अधिकारों की बहाली के लिए संघर्षरत संस्था ‘जागरण’ की बीस वर्ष की वय में सचिव बनीं।
चित्रा मुद्गल के लेखन में जहाँ एक ओर निरंतर रीती होती जा रही मानवीय संवेदनाओं का चित्रण होता है, वहीं दूसरी ओर नए जमाने की रफ्तार में फँसी जिंदगी की मजबूरियों का चित्रण भी बड़े सलीके से हुआ है। इनके पात्र समाज के निम्न वर्ग के होते हैं और उनकी जिंदगी के समूचे दायरे के अंदर तक घुसकर अध्ययन करते हुये आगे बढ़ते है। इनकी रचनाओं में दलित शोषित संवर्ग को विशेष स्थान मिला है।