‘सरस्वतीचंद्र’ कथा के लेखक गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी

गुजराती साहित्य के कथाकार, कवि, चिंतक, विवेचक, चरित्र लेखक तथा इतिहासकार स्व. गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी। उनको सर्वाधिक प्रतिष्ठा द्वितीय उत्थान के सर्वश्रेष्ठ कथाकार के रूप में ही प्राप्त हुई है। जिस प्रकार आधुनिक गुजराती साहित्य की पुरानी पीढ़ी के अग्रणी ‘नर्मद’ माने जाते हैं, उसी प्रकार उनके बाद की पीढ़ी का नेतृत्व गोवर्धनराम के द्वारा हुआ। संस्कृत साहित्य के गंभीर अनुशीलन तथा रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद आदि विभूतियों के विचारों के प्रभाव से उनके हृदय में प्राचीन भारतीय आर्य संस्कृति के पुनरुत्थान की तीव्र भावना जाग्रत हुई। उनका अधिकांश रचनात्मक साहित्य मूलत: इसी भावना से संबद्ध एवं उद्भूत है।

‘सरस्वतीचंद्र’ उनकी सर्वप्रमुख साहित्यिक कृति है। कथा के क्षेत्र में इसे गुजराती साहित्य का सर्वोच्च कीर्तिशिखर कहा गया है। आचार्य आनंदशंकर बापूभाई ध्रुव ने इसकी गरिमा और भाव समृद्धि को लक्षित करते हुए इसे ‘सरस्वतीचंद्र पुराण’ की संज्ञा प्रदान की थी, जो इसकी लोकप्रियता तथा कल्पना बहुलता को देखते हुए सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होती है।

‘स्नेहामुद्रा’ गोवर्धनराम की ऊर्मिप्रधान भाव गीतियों का, संस्कृतनिष्ठ शैली में लिखित एक विशिष्ठ कविता संग्रह है जो सन १८८९ में प्रकाशित हुआ था। इसमें समीक्षकों की मानवीय, आध्यात्मिक एवं प्रकृति परक प्रेम की अनेक प्रतिभा एक समर्थ काव्य विवेचक के रूप में प्रकट हुई है। विल्सन कॉलेज, साहित्य सभा के समक्ष प्रस्तुत अपने गवेषणपूर्ण अंग्रेज़ी व्याख्यानों के माध्यम से गोवर्धनराम जी ने प्राचीन गुजराती साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास किया। इनका प्रकाशन ‘क्लासिकल पोएट्स ऑफ़ गुजरात ऐंड देयर इनफ्लुएंस ऑन सोयायटी ऐंड मॉरल्स’ नाम से हुआ है।

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here