मुक्तक, ब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार सोम ठाकुर

मुक्तक, ब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय कवि श्री. सोम ठाकुर। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। हिन्दी साहित्य के नवसृजन एवं साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आगरा में एक साहित्यिक संस्था ‘रत्नदीप’ थी, जिसे हृषिकेश चतुर्वेदी अपनी सेवायें देते थे तथा प्रति सोमवार को अपने निवास स्थान पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया करते थे। इसी संस्था के अंतर्गत हिन्दी का मासिक पत्र ‘नवीन’ प्रकाशित किया जाता था, जिसमें नवोदित रचनाकारो की रचनाएँ प्रकाशित होती थी। सह संपादक का कार्यभार सोम ठाकुर संभालते थे।

सोम ठाकुर ने सर्वप्रथम आगरा के एक प्रकाशक के यहाँ लिपिक के रूप में नौकरी की तथा वे ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे। नौकरी और ट्यूशन की आय ही उनकी कुल आय थी। किशोर अवस्था में उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता था और इसी से संतोष होता था, परंतु भाग्य रेखा कुछ और ही कह रही थी। सन १९५३ में हाथरस ज़िला अलीगढ़ के मेले में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सोम ठाकुर को भी इसमें आमंत्रित किया गया था। सोम ठाकुर के लिए यह पहला नगर के बाहर का आमंत्रण था, अत: सोम ठाकुर के लिए अति प्रसन्नता का विषय भी बना और जाने की उत्सुकता भी। इसलिए अपने कुर्ते पयज़ामे में हाथरस जा पहुँचे। उनकी कविताओं को लोगो ने बेहद पसंद किया। दो गीत पढ़ने के बाद जब वे विदा हुए तो कुछ रुपये, पत्र-पुष्प भेंट में मिले। रास्ते भर अपने आने-जाने का कुल खर्चा जोड़ के हिसाब लगाया की इससे अच्छा काम और क्या हो सकता है की आय भी और हिन्दी साहित्य के निर्माण में योगदान भी। आगरा वापस सोम ठाकुर ने नौकरी व ट्यूशन करना त्याग दिया और अपने स्वप्न को पूरा करने में जुट गये।

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