बांग्ला भाषा की प्रख्‍यात उपन्यासकार आशापूर्णा देवी

बांग्ला भाषा की प्रख्‍यात कवयित्री एवं उपन्यासकार आशापूर्णा देवी। उनके सृजन में नारी जीवन के विभिन्न पक्ष, पारिवारिक जीवन की समस्यायें, समाज की कुंठा और लिप्सा अत्यंत पैनेपन के साथ उजागर हुई हैं। उनकी कृतियों में नारी का वयक्ति-स्वातन्त्र्य और उसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मुखरित हुई है। चरित्रों का रेखांकन और उनके मनोभावों को व्यक्त करते समय वे यथार्थवादिता को बनाये रखती थीं। सच को सामने लाना उनका उद्देश्य रहता था। उनका लेखन आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए था। उनके उपन्यास मुख्यतः नारी केन्द्रित रहे हैं।

उनके उपन्यासों में जहाँ नारी मनोविज्ञान की सूक्ष्म अभिव्यक्ति और नारी के स्वभाव उसके दर्प, दंभ, द्वंद और उसकी दासता का बखूबी चित्रण किया हुआ है वहीँ उनकी कथाओं में पारिवारिक प्रेम संबंधों की उत्कृष्टता दृष्टिगोचर होती है। उनकी कथाओं में तीन प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं – वक्तव्य प्रधान, समस्या प्रधान और आवेग प्रधान। उनकी कथाएं हमारे घर संसार का विस्तार हैं। जिसे वे कभी नन्ही बेटी के रूप में तो कभी एक किशोरी के रूप में तो कभी ममत्व से पूर्ण माँ के रूप में नवीन जिज्ञासा के साथ देखती हैं।

उपन्‍यास-
प्रेम ओ प्रयोजन (1944)
अग्‍नि-परिक्षा (1952)
छाड़पत्र (1959)
प्रथम प्रतिश्रुति (1964)
सुवर्णलता (1966)
मायादर्पण (1966)
बकुल कथा (1974)
उत्‍तरपुरुष (1976)
जुगांतर यवनिका पारे (1978)

कहानी-
जल और आगुन (1940)
आर एक दिन (1955)
सोनाली संध्‍या (1962)
आकाश माटी (1975)
एक आकाश अनेक तारा (1977)

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