गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार स्व. पन्नालाल पटेल। पन्नालाल पटेल के लेखन कार्य के बारे में बताया जाये तो अगणित लेखन कार्य और प्रकाशन कार्य उन्होंने किया था, जिसमें उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, जीवनी, बच्चों के साहित्य और विविध प्रकार के अन्य लेख भी शामिल हैं। उनके सहित्य का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत् में पन्नालाल पटेल का अविर्भाव एक चमत्कार माना गया। ग्रामीण जीवन के आत्मीय एवं प्रामाणिक चित्रण के साथ ही उन्होंने लोकभाषा का प्रयोग कुछ इस प्रकार किया कि उसकी गति और गीतात्मकता गुजराती गद्य के सन्दर्भ में अपूर्व मानी गयी। पन्नालाल पटेल की सर्वोत्कृष्ट इक्कीस कहानियों की चयनिका ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ कथा साहित्य के सुधी पाठकों के लिए उपलब्ध हो चुकी है। इन कहानियों में उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।
‘जीवी’ पन्नालाल पटेल के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है। यह उपन्यास राजस्थान और गुजरात के सीमा-प्रदेशवर्ती एक गाँव पर आधारित है और इसमें आंचलिक उपन्यासों की परम्परा का नितान्त स्वाभाविक तथा अत्यन्त भव्य रूप देखने को मिलता है। इस उपन्यास के साल-सवा साल के कथा-काल में ग्राम्य-जीवन की सरलता, निश्छलता, अन्ध-विश्वास और बात पर मर मिटने की वृत्ति पग-पग पर प्रकट होती है। भाषा ठेठ ग्रामीण है, जिसमें लेखक ने अनेक बहुमूल्य अनुभव सूक्तियों के रूप में पिरो दिए हैं। लेखक का कथाशिल्प अद्वितीय है। मेले से ही उपन्यास का आरम्भ होता है और मेले से ही अन्त। भारतीय साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए पन्नालाल पटेल को १९५० में ‘रणजितराम पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था और १९८५ में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था।