१८ वीं सदी के कर्नाटक संगीत के महान ज्ञाता तथा भक्तिमार्ग के कवि त्यागराज। इन्होंने भगवान श्रीराम को समर्पित भक्ति गीतों की रचना की थी। उनके सर्वश्रेष्ठ गीत अक्सर धार्मिक आयोजनों में गाए जाते हैं। त्यागराज ने समाज एवं साहित्य के साथ-साथ कला को भी समृद्ध किया था। उनकी विद्वता उनकी हर कृति में झलकती है, हालांकि ‘पंचरत्न’ कृति को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कहा जाता है। त्यागराज जी के जीवन का कोई भी पल श्रीराम से जुदा नहीं था। वह अपनी कृतियों में भगवान राम को मित्र, मालिक, पिता और सहायक बताते थे। दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में प्रभावी योगदान करने वाले त्यागराज की रचनाएं आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं। धार्मिक आयोजनों तथा त्यागराज जी के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों में इनका खूब गायन होता है। त्यागराज जी ने मुत्तुस्वामी दीक्षित और श्यामाशास्त्री के साथ कर्नाटक संगीत को नयी दिशा दी। उनके योगदान को देखते हुए ही उन्हें ‘त्रिमूर्ति’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है।
तंजावुर नरेश त्यागराज जी की प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने त्यागराज को दरबार में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया था। लेकिन प्रभु की उपासना में डूबे त्यागराज ने उनके आकर्षक प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने राजा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर प्रसिद्ध कृति “निधि चल सुखम” यानी ‘क्या धन से सुख की प्राप्ति हो सकती है’ की रचना की थी।
त्यागराज जी ने क़रीब ६०० कृतियों की रचना करने के अलावा तेलुगु में दो नाटक ‘प्रह्लाद भक्ति विजय’ और ‘नौका चरितम’ भी लिखे। ‘प्रह्लाद भक्ति विजय’ जहां पांच दृश्यों में ४५ कृतियों का नाटक है, वहीं ‘नौका चरितम’ एकांकी है और इसमें २१ कृतियां हैं। त्यागराज की विद्वता उनकी हर कृति में झलकती है। हालांकि ‘पंचरत्न’ कृति को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कहा जाता है। सैंकड़ों गीतों के अलावा उन्होंने उत्सव संप्रदाय ‘कीर्तनम’ और ‘दिव्यनाम कीर्तनम’ की भी रचनाएं कीं। उन्होंने संस्कृत में भी गीतों की रचना की। हालांकि उनके अधिकतर गीत तेलुगु में हैं।