- – सविता टिळक / कविता /
कहे ज़िंदगी चल साथ मेरे।
सीख जीना मेरे संग रे।
घिर आयेंगे मुसीबतों के घेरे।
कहीं हो उजाले तो कहीं अंधेरे।
कहीं बनते रिश्ते प्यार भरे।
तो कही दिल तनहाई से डरे।
कहीं दुखों के बादल कारे।
कहीं मुस्कुराहट से खिले चेहरे।
कहीं उतरे रात के साये घनेरे।
डाले सूरज कहीं रोशनी के डेरे।
होते कहीं पर रेत में बसेरे।
घर कहीं हरियाली से सँवारे।
कहीं हो रास्ते काँटों भरे।
कहीं राहों में फूल बिखेरे।
कहीं चिंता के सागर गहरे।
कहीं झरनों सी खुशियों की फुंहारे।
समझना दुनिया के दर्द सारे।
बाँटना सुख के पल सुनहरे।
होगी फिर आनंद की बौछारे।
जो जीवन में लायेंगी बहारे।
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