हिंदी व संस्कृत के कवि, लेखक एवं आलोचक स्व. जानकीवल्लभ शास्त्री। सहज गीत कविता धारा के कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री हिन्दी कविता के उन महान कवियों में से एक हैं जिन्होंने छंदोबद्ध हिन्दी कविता के कई युग एक साथ जिये हैं। प्रारंभ में शास्त्री जी संस्कृत में कविता करते थे। कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और वर्ष चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो ‘गाथानामक उनके संग्रह में संकलित हैं। इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा
जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।
इस क्षेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ। वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया। छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।
ललित निबंध आदि उनकी अन्य अभिव्यक्ति की विधायें रही हैं हंसबलाका(संस्मरण) –कालिदास(उपन्यास)-अनकहा निराला(आलोचना) उनकी विख्यात गद्य पुस्तकें हैं- जिनके माध्यम से शास्त्री जी को जाना जाता है। सहजता – दार्शनिकता और संगीत उनके गीतों को लोकप्रिय बनाते हैं।