रिश्तें… प्यार के

– सविता टिळक / कविता /

गर लोग ना करें आपको ज़िंदगी मेंं शामिल।
ऐसे रिश्तों कें भंवर में फंसके क्या हो हासिल।

मन की चाह पर बनते रिश्ते।
छोटीसी भूल से बिखर जाते।
मतलबी चेहरें दिखाए जो आईने।
तो रिश्तों के क्या कुछ रहे मायने।

रिश्तें जो न जाने दर्द दिल का
और न समझे दुख मन का।
तो जीने का बोझ कैसे उठाए।
कोई कहां कैसे सुख पाए।

आज कई लेकर बैठे दर्द की किताब।
डूबा रहा कितनों को निराशा का सैलाब…
आएगा इस दुनिया में बदलाव कब।
यह देखने के लिए है दिल मेरा बेताब…

एक दिन होगा एक दुजे के दुख का एहसास।
मेरे मन में जगा है यह पूरा विश्वास।

लोग हो जाएंगे परे स्वार्थ से।
जानेंगे सच्चे प्रेम की परिभाषा।
भर जाएगी दुनिया आनंद से।
और खत्म होगी सारी निराशा।

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here