हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जयपुर घराने की अग्रणी गायिका विदुषी किशोरी आमोणकर। ख़्याल, मीरा के भजन, मांड, राग भैरवी की बंदिश ‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाए’ पर उनका गायन तो जैसे संगीत रसिकों के दिल में नक्श सा हो गया है। प्रसिद्ध गायिका मोगुबाई कुर्डीकर (जिन्होंने जयपुर घराने के वरिष्ठ गायन सम्राट उस्ताद अल्लादिया ख़ाँ साहब से शिक्षा प्राप्त की) की बेटी किशोरी आमोणकर संगीत से ओतप्रोत वातावरण में पली-बढ़ीं। सुप्रसिद्ध गायिका मोगुबाई कुर्डीकर की पुत्री और गंडा-बंध शिष्या किशोरी आमोणकर ने एक ओर अपनी माँ से विरासत में और तालीम से पायी घराने की विशुद्ध शास्त्रीय परम्परा को अक्षुण्ण रखा है, दूसरी ओर अपनी मौलिका सृजनशीलता का परिचय देकर घराने की गायिकी को और भी संपुष्ट किया है। किशोरी आमोणकर ने न केवल जयपुर घराने की गायकी की बारीकियों और तकनीकों पर अधिकार प्राप्त किया, बल्कि कालांतर में अपने कौशल और कल्पना से एक नवीन शैली भी विकसित की। इस प्रकार उनकी शैली में अन्य घरानों की बारीकियां भी झलकती हैं।
किशोरी जी की प्रस्तुतियां ऊर्जा और लावण्य से अनुप्राणित होती हैं। उन्होंने प्राचीन संगीत ग्रंथों पर विस्तृत शोध किया है और उन्हें संगीत की गहरी समझ है। उनका संगीत भंडार विशाल है और वह न केवल पारंपरिक रागों, जैसे जौनपुरी, पटट् बिहाग, अहीर और भैरव प्रस्तुत करती हैं, बल्कि ठुमरी, भजन और खयाल भी गाती हैं।
पद्म विभूषण से सम्मानित किशोरी ने योगराज सिद्धनाथ की सारेगामा द्वारा निकाली गई एलबम ‘ऋषि गायत्री’ के लोकार्पण के अवसर पर कहा, “मैं शब्दों और धुनों के साथ प्रयोग करना चाहती थी और देखना चाहती थी कि वे मेरे स्वरों के साथ कैसे लगते हैं। बाद में मैंने यह सिलसिला तोड़ दिया क्योंकि मैं स्वरों की दुनिया में ज़्यादा काम करना चाहती थी। मैं अपनी गायकी को स्वरों की एक भाषा कहती हूं।” उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मैं फ़िल्मों में दोबारा गाऊंगी। मेरे लिए स्वरों की भाषा बहुत कुछ कहती हैं। यह आपको अद्भुत शांति में ले जा सकती है और आपको जीवन का बहुत सा ज्ञान दे सकती है। इसमें शब्दों और धुनों को जोड़ने से स्वरों की शक्ति कम हो जाती है।” वह कहती हैं, “संगीत का मतलब स्वरों की अभिव्यक्ति है। इसलिए यदि सही भारतीय ढंग से इसे अभिव्यक्त किया जाए तो यह आपको असीम शांति देता है।”
जयपुर घराने की अग्रणी गायिका विदुषी किशोरी आमोणकर
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