हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार, संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान स्व. विद्यानिवास मिश्र। हिन्दी साहित्य को अपने ललित निबंधों और लोक जीवन की सुगंध से सुवासित करने वाले विद्यानिवास मिश्र ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने आधुनिक विचारों को पारंपरिक सोच में खपाया था। साहित्य समीक्षकों के अनुसार संस्कृत मर्मज्ञ मिश्र जी ने हिन्दी में सदैव आँचलिक बोलियों के शब्दों को महत्त्व दिया। ललित निबंध की विधा के लोकप्रिय नामों की बात करें तो हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र एवं कुबेरनाथ राय आदि चर्चित नाम रहे हैं। लेकिन यदि लालित्य और शैली की प्रभाविता और परिमाण की विपुलता की बात की जाए तो विद्यानिवास मिश्र इन सभी से कहीं अग्रणी रहे हैं। विद्यानिवास मिश्र के साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा ललित निबंध ही हैं।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रो॰ मिश्र जी का लेखन आधुनिकता की मार देशकाल की विसंगतियों और मानव की यंत्र का चरम आख्यान है जिसमें वे पुरातन से अद्यतन और अद्यतन से पुरातन की बौद्धिक यात्रा करते हैं। ‘‘मिश्र जी के निबन्धों का संसार इतना बहुआयामी है कि प्रकृति, लोकतत्व, बौद्धिकता, सर्जनात्मकता, कल्पनाशीलता, काव्यात्मकता, रम्य रचनात्मकता, भाषा की उर्वर सृजनात्मकता, सम्प्रेषणीयता इन निबन्धों में एक साथ अन्तग्रंर्थित मिलती है। हिन्दी की शब्द संपदा, हिन्दी और हम, हिन्दीमय जीवन और प्रौढ़ों का शब्द संसार जैसी उनकी पुस्तकों ने हिन्दी की सम्प्रेषणीयता के दायरे को विस्तृत किया। तुलसीदास और सूरदास समेत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अज्ञेय, कबीर, रसखान, रैदास, रहीम और राहुल सांकृत्यायन की रचनाओं को संपादित कर उन्होंने हिन्दी के साहित्य को विपुलता प्रदान की।