कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध कवि दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे। उन्होंने कन्नड़ काव्य को सम्माननीय ऊँचाई दिलवाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उनका प्रथम कविता संग्रह प्रकाशित होने से पूर्व ही समाज ने उन्हें एक कवि के रूप में अंगीकार कर लिया था। बेंद्रे सर्वाधिक प्रबुद्ध कन्नड़ लेखकों में से एक हैं। प्रांरभ से ही उनके आगे यह समस्या रही कि किस प्रकार लोक समाज से मनोभावों का अपनी निजी बौद्धिक और आध्यात्मिक अनुभूतियों के साथ ताल-मेल बैठाया जाये।
चिंतन और भावानुभूति, वस्तुपरक और आत्मपरक विषय, दोनों को अपनी रचनाओं में समायोजित करने के कारण बेंद्रे के काव्य को कुछ आलोचकों ने बौद्धिक काव्य का नाम दिया है। यह सच है कि उनकी कितनी ही कविताएँ बौद्धिक प्रगीत हैं, जबकि अन्य सबके विषय आध्यात्मिक हैं या रहस्यवादी। किंतु बेंद्रे न रोमांसवादी थे और न ही प्रतिबद्धता के कवि। वह एक संपूर्ण कवि थे, जिन्होंने युग के चेतना बिंदु के साथ स्वंय को जोड़ा। वह ऐसे कवि थे, जिन्हें भाषा व अभिव्यक्ति पर इतना अधिकार था कि जटिल विचाक-बोध और अनुभूति को भी प्रत्यक्ष कर दें।
‘नाकुतंती’, (चार तार) कवि दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का एक कविता संग्रह है, जिसमें ४४ कविताएँ हैं। इनमें से छ: का संबंध समकालीन लेखकों के प्रति उनके अपने नाते और जनतंत्र के वास्तविक अभिप्राय से है। शेष कविताओं में चिंतन और भावनाओं की एक विलक्षण संगति देखने को मिलती है। ‘नाकुतंती’ कविता में कवि के व्यक्तित्व के चारों पक्षों, मैं, तुम, वह और कल्पनाशील आत्मसत्ता का वर्णन हुआ है। ये चार पक्ष ही कवि के व्यक्तित्व का चौहरा ढांचा है, और चार के इसी मूलभूत तत्व को कवि ने अपनी अनुभूति के सभी आध्यात्मिक और सौंदर्यात्मक क्षेत्रों में पहचाना। कविता की सृजन-प्रक्रिया विषयक छ: सॉनेटों में बेंद्रे ने कविता के चार मूल तत्त्व गिनाए हैं- ‘शब्द’, ‘अर्थ’, ‘लय’ औऱ ‘सहृदय’। संग्रह की एक और कविता में प्रभावपूर्ण बिंबों के द्वारा कवि ने वाकशक्ति के चारों रूपों- ‘परा’, ‘पश्यंती’, ‘मध्यमा’ और ‘वैखरी’ का वर्णन किया है। बेंद्रे की सौंदर्य विषयक परिकल्पना के भी चार पक्ष हैं- इंद्रियगत, कल्पनागत, बुद्घिगत और आदर्श, जो उनकी कविताओं में यथास्थान आए हैं।