हिंदी साहित्य के प्रभावशाली कथाकार, निबंध लेखक, आलोचक और कवि रघुवीर सहाय। उनके साहित्य में पत्रकारिता का और उनकी पत्रकारिता पर साहित्य का गहरा असर रहा है। सहाय जी का सम्बंध उस पीढी से था जो स्वतंत्रता के बाद काफ़ी सारी आकांक्षाओं के साथ पली-बढी थी। सहाय जी ने उन्हीं आकांक्षाओं को अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। सहाय की गिनती ऐसे कवियों में भी की जाती है जो प्रेरणा के लिए अतीत में झांकने के बजाय भविष्योन्मुखी रहना पसंद करते थे।
उनकी कविताएँ आज़ादी के बाद विशेष रूप से सन १९६० के बाद के भारत की तस्वीर को समग्रता में पेश करती हैं। उनकी कविताएँ नए मानव संबंधों की खोज करना चाहती हैं जिसमें गैर बराबरी, अन्याय और गुलामी न हो। उनकी समूची काव्य-यात्रा का केंद्रीय लक्ष्य ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था की निर्मिति है जिसमें शोषण, अन्याय, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, जाति-धर्म में बँटे समाज के लिए कोई जगह न हो।
सहाय जी एक बडे और लंबे समय तक याद रखे जाने वाले कवि हैं। उन्होंने साहित्य में अक्सर अजनबीयत और अकेलेपन को लेकर लिखी जाने वाली कविताओं से भी परे जाकर अलग मुद्दों को अपनी कृतियों में शामिल किया। सहाय राजनीति पर कटाक्ष करने वाले कवि थे। मूलत: उनकी कविताओं में पत्रकारिता के तेवर और अख़बारी तजुर्बा दिखाई देता था। भाषा और शिल्प के मामले में उनकी कविताएं नागार्जुन की याद दिलाती हैं। अज्ञेय की पुस्तक ‘दूसरा सप्तक’ में रघुवीर सहाय जी की कविताओं को शामिल किया गया। उस दौर में तीन नाम शीर्ष पर थे – गजानन माधव मुक्तिबोध फंतासी के लिए जाने जाते थे, शमशेर बहादुर सिंह शायरी के लिए पहचान रखते थे, जबकि सहाय अपनी भाषा और शिल्प के लिए लोकप्रिय थे। शब्द भण्डार की दृष्टि से रघुवीर सहाय जी का चिंतन, उनकी रचनायें और अभिव्यक्ति पक्ष कहानियों के माध्यम से सशक्त बनकर प्रकट हुआ।
उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से भाषा का पारम्परिक मोह त्यागकर सरल और बोलचाल की भाषा, जो आम आदमी के समीप होती है, का उपयोग अपनी कहानियों में बखूबी किया है। रघुवीर सहाय जी ने अपनी कहानियों में वाक्य विन्यास के रूढ़ नियमों से अपने को दूर रखा। रघुवीर सहाय ने अपने वाक्य विन्यास के माध्यम से अपनी कहानियों को एक नया आयाम दिया। हालांकि उनकी कहानियाँ वैयक्तिक होने के कारण उन्हें पूर्णतया समझ पाना तो कठिन है किन्तु सामान्यतः कहा जा सकता है कि वे सभी प्रयोगों के लिये सभी प्रकार के वाक्यों के प्रयोग को योग्य मानते है। किसी दृश्य को जब वह क्रमिक बिम्बों का रूप देना चाहते है तो उनके व्याकरण चिह्नों का प्रयोग द्वारा लम्बे वाक्यों का प्रयोग उन्हें उपर्युक्त लगता है। लगता है जैसे सब कुछ सहज स्वाभाविक रूप से सामने आ रहा है।
वास्तव में उनका विषय उसमें आई भावना और विचारधारा तथा उसे प्रकट करने की अत्यन्त संक्षिप्त वाक्य रचना भी पर्याप्त रूप से दिखाई देती है। जो दृढ़ और ठण्डी भंगिमा से शक्ति पाकर नग्न यथार्थ की भयावहता तथा संश्लिष्ट मानव रागों की उत्कटता व्यंजित करता है। रघुवीर सहाय सर्वथा नए शिल्प और नई भाषा में कहानियां लिखते हुए कहानी लिखने के अपने बड़े उद्देश्य को कभी नहीं भूलते। वे अपनी कहानियों के माध्यम से पाठकों में परिवर्तन की इच्छा और सामर्थ्य पैदा करना चाहते हैं। इसीलिए अपनी कहानियों के द्वारा उनकी कोशिश एक संपूर्ण मनुष्य बनाने की होती है।