हिन्दी भाषा के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार स्व. राजेंद्र यादव। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा १९३० में प्रकाशित पत्रिका ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। हिंदी पत्रिका ‘हंस‘ के २५ साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेंद्र यादव यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत् की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें शीर्ष पर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सर्वप्रथम राजेंद्र यादव का नाम सामने आता है। अपने २५ साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर कहानी, कविता, लेख, संस्मरण, समीक्षा, लघुकथा, ग़ज़ल इत्यादि सभी विधाओं को उत्कृष्टता के साथ समेटे हुए है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के तहत प्रस्तुत राजेंद्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नज़र आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं।
जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं पर उनकी समान पकड़ थी। साहित्य में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे स्तम्भ पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है। कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेंद्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत् में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेंद्र यादव का योगदान अप्रतिम है।