अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी

किराना घराने के ज्येष्ठ शास्त्रीय गायक स्व. पंडित भीमसेन जोशी। अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी कला और संस्कृति की दुनिया के छठे व्यक्ति थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्‍न’ से सम्मानित किया गया था। भारतीय संगीत के क्षेत्र में इससे पहले एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रविशंकर और लता मंगेशकर को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा चुका है। ‘किराना घराने’ के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्‍न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की। पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, संगीत के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने ‘सुधा कल्याण’, ‘मियां की तोड़ी’, ‘भीमपलासी’, ‘दरबारी’, ‘मुल्तानी’ और ‘रामकली’ जैसे अनगिनत राग छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, “उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, बेगम अख़्तर का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए थे। उन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए गुलज़ार ने पूछा- “आजकल के जो गायक हैं उन्हें सुनते हैं तो कैसा लगता है?” इस पर जोशी जी का जवाब था- “हमने तो बड़े गुलाम अली, उस्ताद अमीर ख़ाँ और गुरुजी को सुना है। वह कान में बसा हुआ है। आज बहुत सारे गाने वाले हैं, समझदार हैं, अच्छी तैयारी भी है, लेकिन उनका गाना दिल को छू नहीं पाता।”

देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया था तो भीमसेन जोशी ने पुणे में कहा था कि-

“मैं उन सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों की तरफ से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी संगीत को समर्पित कर दी।”

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