फौजी की कहानी

– रोहन पिंपळे / कविता /

निकला था घर से विदा लेके,
देश के लिए मर मिटा था…
माँ की आँखों में थे आंसू,
चौड़ा हुआ था जिसका सीना, वो पिता था…
ख़ामोशी से मुस्कुराके,
अपने देश के लिए चल दिया था…
अगर सरहद पे होता कोई छेद,
तो अपने खून से वह सीता था…

जिस वक़्त करनी थी उसे,
मरम्मत अपने घर की,
समझाने अपने परिवार को,
बात करता वह सब्र की…
देश की सेवा का जुनून,
उसके सर पे चढ़ा था,
बचाने अपने देश की शान,
भरी जवानी में वह मरमिटा था…

मेहंदी का रंग अब भी
दुल्हन के हाथो से जुड़ा था…
और आँखों के सामने वह,
तिरंगे में लिपटा पड़ा था…
अब ज़िन्दगी भी मायूस थी
उसको भी समझ नहीं आया…
के आखिर दोनों में से
किसका त्याग ज़्यादा बड़ा था…

सो रहे थे हम,
तब झेल रहे थे वे गोलियां…
क़ुर्बान होकर देश पर भर रहे थे वे
खुशियों से दूसरों की झोलियाँ…
हसके शहादत पाना ही
उनका एकलौता ख़्वाब था…
अपनी अर्थी को ही वे समझते थे
उनके ज़िन्दगी की डोलियां…

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