भारत की नृत्य सम्राज्ञी ‘सितारा देवी’

भारतीय शास्त्रीय संगीत के कत्थक नृत्यशैली की विख्यात नृत्यांगना स्व. सितारा देवी। सितारा देवी का जन्म दीपावली की पूर्वसंध्या पर ‘कलकत्ता’ (आधुनिक कोलकाता) में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम ‘धनलक्ष्मी’ था, जबकि घर में प्यार से इन्हें ‘धन्नो’ कहकर पुकारा जाता था। कथक इन्हें अपने पिता आचार्य सुखदेव से विरासत में मिला था। सितारा देवी को बाल्यकाल में ही माता-पिता के प्यार से वंचित होना पड़ा। मुँह टेढ़ा होने के कारण भयभीत अभिभावकों ने इन्हें एक दाई को सौंप दिया था, जिसने आठ साल की उम्र तक इनका पालन-पोषण किया। इसके बाद ही सितारा देवी अपने घर आ सकीं। उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की आयु में ही कर दिया गया था। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभाल लें, किंतु वह स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहती थीं। स्कूल जाने के लिए जिद पकड़ लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें ‘कामछगढ़ हाई स्कूल’ में प्रवेश दिला दिया गया। यहाँ सितारा देवी ने एक अवसर पर नृत्य का उत्कृष्ट प्रदर्शन करके सत्यवान और सावित्री की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में भूमिका प्राप्त करने के साथ ही अपने साथी कलाकारों को भी नृत्य सिखाने की ज़िम्मेदारी प्राप्त की। कुछ समय बाद सितारा देवी का परिवार मुम्बई चला आया। फ़िल्मों में कथक को लाने में इनका प्रमुख योगदान रहा था। बाद के दिनों में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक के आसिफ़ और फिर प्रदीप बरोट से इन्होंने विवाह किया। उस समय एक अखबार ने उनके नृत्य प्रदर्शन के बारे में लिखा था, “एक बालिका धन्नो ने अपने नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को चमत्कृत किया।” इस खबर को उनके पिता ने भी पढा और बेटी के बारे में उनकी राय बदल गई। इसके बाद धन्नो का नाम सितारा देवी रख दिया गया और उनकी बडी बहन तारा को उन्हें नृत्य सिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई।

सितारा देवी जी ने पंडित शंभु महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। दस वर्ष की उम्र होने तक वह एकल नृत्य का व्यावसायिक प्रदर्शन करने लगीं। अधिकतर वह अपने पिता के एक मित्र के सिनेमा हाल में फिल्म के बीच में पंद्रह मिनट के मध्यान्तर के दौरान अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं। नृत्य की लगन के कारण उन्हें स्कूल छोडना पड़ा और ग्यारह वर्ष की आयु में उनका परिवार मुम्बई चला गया। मुम्बई में उन्होंने जहांगीर हाल में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यहीं से कथक के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में उनके साठ साल लंबे नृत्य व्यवसाय का आरंभ किया। सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह लंदन में प्रतिष्ठित ‘रॉयल अल्बर्ट’ और ‘विक्टोरिया हॉल’ तथा न्यूयार्क के ‘कार्नेगी हॉल’ में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ कथक, बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।

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