हिंदी भाषा के प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार स्व. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’। अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया रही। अज्ञेय ने अभिव्यक्ति के लिए कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन। उपन्यास के क्षेत्र में ‘शेखर’ एक जीवनी हिन्दी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना। नाट्य-विधान के प्रयोग के लिए ‘उत्तर प्रियदर्शी’ लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं।
साहित्यिक रचनाएं
कविता भग्नदूत (१९३३)
चिंता (१९४२)
इत्यलम (१९४६)
हरी घास पर क्षण भर (१९४९)
बावरा अहेरी (१९५४)
आंगन के पार द्वार (१९६१)
पूर्वा (१९६५)
कितनी नावों में कितनी बार (१९६७)
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (१९६९)
सागर मुद्रा (१९७०)
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (१९७३)
उपन्यास
शेखर,एक जीवनी (१९६६)
नदी के द्वीप (१९५२)
अपने अपने अजनबी (१९६१)