हिन्दी भाषा के लेखक एवं कवि स्व. नरेंद्र शर्मा। अल्पायु से ही साहित्यिक रचनायें करते हुए पंडित नरेन्द्र शर्मा ने २१ वर्ष की आयु में पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा प्रयाग में स्थापित साप्ताहिक “अभ्युदय” से अपनी सम्पादकीय यात्रा आरम्भ की। शीघ्र ही जागरूक, अध्ययनशील और भावुक कवि नरेन्द्र ने उदीयमान नए कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में इनका मुकाबला हरिवंशराय बच्चन से ही हो सकता था। १९३३ ई. में इनकी पहली कहानी प्रयाग के ‘दैनिक भारत’ में प्रकाशित हुई। १९३४ ई. में इन्होंने मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकृति ‘यशोधरा’ की समीक्षा भी लिखी। सन् १९३८ ई. में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त ‘रूपाभ’ नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया। इसके संपादन में सहयोग दिया नरेन्द्र शर्मा ने। भारतीय संस्कृति के प्रमुख ग्रंथ ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ इनके प्रिय ग्रंथ थे। महाभारत में रुचि होने के कारण ये ‘महाभारत’ धारावाहिक के निर्माता बी. आर. चोपड़ा के अंतरंग बन गए। इसलिए जब उन्होंने ‘महाभारत’ धारावाहिक का निर्माण प्रारंभ किया तो नरेन्द्रजी उनके परामर्शदाता बने। उनके जीवन की अंतिम रचना भी ‘महाभारत’ का यह दोहा ही है- “शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त”।