संत कबीर के साहित्य जगभर में पहचान दिलानेवाले परशुराम चतुर्वेदी

संस्कृत तथा हिंदी भाषा के प्रमुख साहित्यकार स्व. परशुराम चतुर्वेदी। वे पेशे से वकील थे, किंतु आध्यात्मिक साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। संस्कृत तथा हिन्दी की अनेक उपभाषाओं के वे पंडित थे। परशुराम चतुर्वेदी का व्यक्तित्व सहज, सरल स्वभाव का था। वे स्नेह और सौहार्द के प्रतिमूर्ति तथा महान अन्वेषक थे। मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में उन्होंने संत साहित्य का गहन अध्ययन किया। वे मुक्त चिंतन के समर्थक थे, इसलिये किसी सम्प्रदाय या झंडे के नीचे बंधकर रहना पसंद नहीं किया। साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के वे पक्षधर थे। उनकी विद्वता के आगे बड़े-बड़ों को हमेशा झुकते देखा गया। उनका जीवन मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित था।
बहुत कम लोग जानते हैं कि कबीर को जाहिलों की कोह में से निकाल कर विद्वानों की पांत में बैठाने का काम आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने ही किया था। कबीर के काव्य रूपों, पदावली, साखी और रमैनी का जो ब्यौरा, विस्तार और विश्लेषण आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने परोसा है, और ढूंढ ढूंढ कर परोसा है, वह आसान नहीं था। दादू, दुखहरन, धरनीदास, भीखराम, टेराम, पलटू जैसे तमाम विलुप्त हो चुके संत कवियों को उन्होंने जाने कहां-कहां से खोजा, निकाला और उन्हें प्रतिष्ठापित किया।
संत साहित्य के पुरोधा जैसे विशेषण उन्हें यूं ही नहीं दिया जाता। मीरा पर भी आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने जो काम किये वे अविरल हैं। गांव-गांव, मंदिर-मंदिर जो घूमे, यहां तक कि मीरा के परिवार के महाराजा अनूप सिंह से भी मिले तो यह आसान नहीं था। कुछ लोग तो उन्हें गड़े मुर्दे उखाड़ने वाला बताने लगे थे, पर जब उन की किताबें छप-छप कर डंका बजा गईं तो यह ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले’ की जबान पर ताले लग गए।
‘उत्तरी भारत की संत साहित्य की परख’, ‘संत साहित्य के प्रेरणा स्रोत’, ‘हिंदी काव्य धारा में प्रेम प्रवाह’, ‘मध्य कालीन प्रेम साधना’, ‘सूफी काव्य संग्रह’, ‘मध्य कालीन श्रृंगारिक प्रवृत्तियां’, ‘बौद्ध साहित्य की सांस्कृतिक झलक’, ‘दादू दयाल ग्रंथावली’, ‘मीराबाई की पदावली’, ‘संक्षिप्त राम चरित मानस’ और ‘कबीर साहित्य की परख’ जैसी उन की किताबों की फेहरिस्त बहुत लंबी नहीं तो छोटी भी नहीं है।
‘शांत रस एक विवेचन’ में शांत रस का जो छोटा-छोटा ब्यौरा वह परोसते हैं, वह दुर्लभ है। अजीब संयोग है कि बलिया में गंगा के किनारे के गांव में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्मे और दूसरे किनारे के गांव जवहीं में आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जन्मे। दोनों ही प्रकांड पंडित हुए। पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रसिद्धि का शिखर छू गए। और आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने विद्वता का शिखर छुआ।

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